Book Title: Neminahacariya Part 2
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 264
________________ ३१२४ ] किं पुव्व जम्मम्मि मह ता पभणइ भुवण-गुरु भवि पुव्विल्लि वसंत - पुरि सोमस्सिरि - नामियए तई [३१२०] कहसु जय-पहु विहिउ मई पावु [३१२१] निय सवत्तिहिं सत्त-रयणाई हरियई अह कह - वि नणु कयवर - मज्झ मई एक्कु रयणु वियरिय न उ कम्मण तु छ-स्य - विरहु मेलावर एगेण ॥ नेमिवृत्तंतु [ ३१२२] मा उण एहि विवरसु जमिमे कय-लक्खणा महाभागा । निविय - पाव - कम्मा सिव-सम्मं पाउणिस्संति ॥ पसरत - सिणेह तह Jain Education International 2010_05 हुउ जमिह सुय- विरहु एरिस | भदि एहु लेसेण निसुणसु ॥ सोम - नाम - निवइस्सु । चंदलेह - नामस्तु ॥ [३१२३] तयणु किंचि-वि विगय- संताव मुणिहिं पाय-पउम नमसइ । अणुभासिवि जिण वयणु पुणु-वि पुणु-वि तहं गुण पसंसइ || ता भवियंभोरुह - तरणि गउ अन्नहिं भयवंतु । तयणतरु देव धरिवि मणि निय-सुय बुतंतु ॥ उच्छंगि चडावियउ इय जंपिर अंसु - जल पण मेऊण य भणिउ ता निय-दुइ-चइयरु कहइ ३१२३. ३. क. नमसई. ३१२४. ८. क. कहई. दुहिय मह तर्हि वलवलंतिहि । लद्ध एहु इय तई भणतिहिं ॥ इयराई इय तेण । [३१२४] अहह एक्कु विमईं न निय- पुत्त - - वय खणु वि लालिउ पमोइण । पुन्न - नयण सच्चविय कण्हिण ॥ हि तं सु-विसन्निय माय । देवइ गरुय विसाय ॥ ६९३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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