Book Title: Neminahacariya Part 2
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 265
________________ नेमिनाहचरिउ [३१२५] अह पयंपइ कण्हु मा अंव तं कुणसु विसाउ कु-वि उज्जमेसु हउं कह-वि तह जह । तुह हविहइ तणउ अह भणइ देवि - निय-वाय अ-वितह ॥ कुणसु लहुं चिय कण्ह अह उववासियउ हवेवि । उस्सग्गिण ठिउ कण्हु मणि तियस-विसेसु धरेवि ॥ तयणु तियसिण भणिउ - नणु कण्ह तुह जणणिहि अंगरुहु नियय-महिम-निज्जिणिय-सुरवइ । लहु हविहइ किंतु वउ नूण अ-कय-वीवाहु गहिहइ ॥ अह जायउ एवं पि इय सिरि-देवइहि पउत्तु । अह वरु वियरिवि सो तियसु नियय-हाणि पहुत्तु ॥ [३१२७] तयणु नंदणु जाउ देवइहि सु-स्सिविणुवसाइयउ दिण्णु णामु तसु गरुय-रिद्धिण । वसुदेविण मेलिउण स-घरि सयल जायव सु-लग्गिण ॥ सिरि-गयसुकुमालो त्ति अह कम-पाविय-तारुण्णु । सोमसम्म-वंभण-दुहिय-रयणु वरेइ स-उण्णु ॥ [३१२८] कण्हो उण वासासुं गंतुं अंतेउरस्स मज्झम्मि । अइगमइ वासराई जिय-संघायस्स रक्ख-कए । [३१२९] लोगम्मि पुणु पवाओ जाओ जह सुयइ वासुदेवो ति ॥ नीहरिए तम्मि वर्हि वासंते उढइ हरि त्ति ॥ [३१३०] अह कत्तिय-एक्कारसि-तिहीए सीहासणम्मि उवविसिउं । पत्तेयं पत्तेयं संभालइ निय-जणं कण्हो ॥ ३१२६. ७. पउत्थु. ३१२७. २. सुस्सिमिणु. क. जयसुकुमालो. ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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