Book Title: Neminahacariya Part 2
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 241
________________ ६७० [३००० नेमिनाहचरिउ [३०००] एत्थ-अंतरि सच्चहामाए विन्नत्तउ हरि-पुरउ नाह अत्थि मह लहुय भइणिय । राईमइ नाम निय- रूव-विजिय-तइलोय-तरुणिय ॥ धुवु तहि अरिहइ नेमि पर नेमिहि स जि अरिहेइ । जइ पुणु न कुणइ एहु विहि ता अप्पउं विनडेइ ॥ [३००१] तयणु कण्हिण निय-महामच्चु सिरि-उग्गसेणह निवह सन्निहाणि पेसविउ तेण-वि । अवलोइउ राइमइजा न सक्क वन्निउ सुरेण वि ॥ उग्गसेण-निवइहि पुरउ भणियउ पुणु - तई दिन्न । नेमि-कुमारु विवाहिसइ इह राईमइ कन्न ॥ [३००२] अहह रोरह गिहि कणय-ट्रि कट मरुहुं माणस-सलिलु वपु दरिद्द-गिहि काम-धेणुय । जइ हविहइ तुह वयणु सच्चु एहु भवियव्य-जाणुय ॥ ता अमच्च सव्वायरिण तुहूं तह कह-वि जएसु । जह जायइ इहु अ-वितहु जि तुज्झ वयणु नीसेमु ॥ [३००३] एहु सयलु वि कहइ वुत्तंतु सचिवाहिवु केसवह तिण वि कहिउ सिरि-समुदविजयह । तेणावि-हु तक्खणिण गयण(?) तणउ वाहरिउ स-घरह ॥ तेण वि साहिउ सन्निहिउ लग्ग-दियहु निवइस्सु । नरवइणावि हु कहिउ सिवादेविहि निय-दइयस्सु ॥ ३००३. ३. ख drops the portion from समुद (३००३. ३) to परिगयह (३००४.५). ५. The letter next to गय is blurred in क. Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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