Book Title: Neminahacariya Part 2
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 261
________________ [३१०० नेमिनाहचरिउ [३१००] एत्थ-अंतरि नेमि-जिण-इंदु नीसेसाइसय-निहि विहरमाणु उज्जाणि पत्तउ । अह आइउ हरि पुहुहु वंदणत्थु जायविहिं जुत्तउ ॥ नमिवि मुणि वि वंदणय-फलु हरि भव-भमण-विरत्तु । पास-टिइण कुविंदइण वीरएण संजुत्तु ॥ [३१०१] देइ भत्तिहिं वारसावत्तु वंदणउं महा-मुणिहिं गरुय-गुणहं अट्ठार-सहसहं । तयणंतर विण्णवइ कण्हु सविहि जय-नाह-पायहं ॥ जह - पहु मई एइण भविण किय संगाम अणेग । न-उण किलेसिय एरिसिण समिण कह-वि मह अंग ॥ [३१०२] तयणु पभणइ भुवण-दिण-इंदु नणु कण्ह फलं पि तई पत्तु अ-समु वंदणय-दाणिण । जं तइया तारिसिण समगु रिउहि संगाम-करणिण ॥ सत्तम-पुहइहि हेउ परिसंचिउ कम्मु अहेसि । संपइ सेसु खवेवि किउ महिहि तइज्जह रेसि ॥ [३१०३] तित्थयर-नामगोयं कम्मं च निवद्धमेण्हि हविहसि य । भावि-चउव्वीसाए तुमं दुवालसम-तित्थयरो ॥ [३१०४] वंदण-विरयणेण हि साहूण सुयस्स हवइ उवयारो । भिज्जइ माण-ग्गंठी पूइज्जइ गुरुयणो विहिणा ॥ [३१०५] सिढिलिज्जंति असेसाओ-वि हु असुहाओ कम्म-पयडीओ। सिंचिज्जति नरामर-सिव-सुह-फलया सुकय-तरुणो ।। ३१०२. ८. क. खवेमि. Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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