Book Title: Neminahacariya Part 2
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 252
________________ ६८१ ३०५६ ] नेमिवुर्ततु [३०४६] एहु सयलु वि मोह-ललियं ति मन्नंतउ अणवसरु मुणिरु तेसि पडिवोह-समयह । वियरंतउ इच्छियउं वरिस-दाणु सयलह वि लोयह ॥ ससहर-विमल-विवेय-गिरि- सिहरि सामि आरूढु । दाणु पयच्छइ वच्छरिण पुणु इहु जिण-पह-रूहु ॥ [३०४७] एगा हिरण्ण-कोडी अटेव अणूणगा सय-सहस्सा । सरोदय-माईयं दिज्जइ जा पायरासाओ ॥ [३०४८] तिन्नेव य कोडि-सया अट्ठासीइं च होंति कोडीओ। असियं च सय-सहस्सा एवं संवच्छरे दिन्नं ॥ [३०४९] तत्तो दिक्खा-समयं आसण-कंपेण नाउ देविंदा । सव्वे वि पुरो पहुणो समागया सयल-रिद्धीए ॥ [३०५०] भवणवइ-वाणमंतर-जोइसियाणं असंख-कोडीओ। देवाणं देवीण य तेहिं समं एंति तुट्ठाओ ॥ [३०५१] ता वारवई नयरिं आरम्भ सुरंगणा-सहस्सेहिं । पूरिज्जइ देवेहिं स-विमाणेहिं नहमसेसं ॥ [३०५२] वुढेि च गंध-जल-कुसुम-रयण-निवहेहिं जिणहरे काउं । पणमंति जिण-वरं ते थुणहिं य थोत्तेहिं पवरेहिं ॥ [३०५३] कण्ह-प्पमुहो य तहिं जायव-वग्गो मिलेइ सयलो वि । किमिमं ति विम्हिओ अह समुद्दविजयं स-सिवदेविं ॥ [३०५४] सव्वे वि तियस-पहुणो थुणंति पीऊस-वरिस-वयणेहिं । जह - तुब्भे च्चिय धन्ना हरिवंसो चेव सलहिज्जो ॥ [३०५५] जत्थुप्पन्नो एसो तइलोय-दिवायरो कुमारो वि । निज्जिय-भुवण-त्तय-कुसुमचाव-उवहणिय-माहप्पो ॥ [३०५६] वावीसम-तित्थयरो असेस-सुरराय-पणय-पय-पउमो । भारह-वासे भुवणयल-भूसणो जिण-वरो नेमी ॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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