Book Title: Neminahacariya Part 2
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad
________________
६७४
[३०१६
नेमिनाहचरिउ [३०१६]
ता धवक्किय-हियय इयरीउ जति - किं एउ सहि गरुय-हरिस-ठाणि वि विवनय । जं दीसहि अह भणइ राइमइ वि अच्चंत-सुन्नय ॥ किं-पि न-याणहुं हलि सहिउ किं पुण फुडइ व सिसु । तोडु पवट्टइ कुच्छिहिं वि डाह-जरिणं मीसु ॥
[३०१७]
मणु खुडुक्कइ फुरहिं नीसासु रणरणउ समुल्लसइ दाहिणंग-नयणाई फंदहिं । पेक्खंतिहि पुणु भुवण- नाहु नयण आणंदु संदहि ॥ ता न-वि याणहुँ होइसइ ज मह विहिहि वसेण । तयणु स-संकिण सहियणिण भणिउ - सुयणु किमणेण ॥
[३०१८]
तुह अणिहिण चिंतियव्वेण जं आइउ एहु पिउ दिछु तइं वि निय-नयण-कमलिहिं । परिणेसइ अज्ज तई रंजवेज्ज तुहुँ पिउ सु-चरिइहि ॥ कंकणि करयलि संठियइ सहि आरीसइं काई । इय अज्ज-वि किं न तुहुं चयसि इहि संका-वयणाई ॥
[३०१९]
इय भणंतहं ताहं स-सहीण वयणाई राइमइ सुणिर हियउं संधीरमाण वि । परिसंकिर भावि दस रुयइ चेव वारिज्जमाण वि ॥ नेमि-कुमारु वि परिणयण- विमुह-मणु वि गच्छेइ । जा अग्गिम-पहु कित्तिउ वि ताव झत्ति पेच्छेइ ॥
३०१६. १. क. हिय इयरीओ; न. इइयरीउ. ४. क. दीसइ. ९. जरेण मीसु corrected as संमीसु.
३०१७. ५. क. आणंद. ३०१८. १. क. अणटिण,
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318