Book Title: Neminahacariya Part 2
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 234
________________ २९७५] नेमिवृत्तंतु [२९७२] काल-जोगिणसेस-रिउ-पवरु संपत्तु वसंत-महु जहिं स-तोसु सहयार-सिहरिहिं । निरु विहुरिय-विरहिइहिं मंजरीउ अवयंसिकीरहिं ॥ मलयानिल-संगिण भमर पसरिय-गुरु-झंकार । देसंतर-गमणुम्मणहं पहियहं कुणहिं निवार ॥ [२९७३] मयण-नरवइ-रज्ज-अहिसेउ साहंति व तिहुयणह महुर-रविहि तरु-सिहर-संठिय । कलयंठिय चूय-तरु- मंजरीण कवलणिण तुहिय ॥ सिसिरु हयासु सु उहु गयउ कवलिउ महु-दियहेहिं । इय कुमुइणि-तरुणिउ हसहि वियसिय-कुमुय-मुहेहिं ॥ [२९७४] वउल-पायव-नियर घुम्मंति वहु-पीय-सीयासव व अंव-तंव-पह पुणु विरायहि । मज्झम्मि अ-माइयउ वहि फुरंतु नं राउ दावहिं ॥ मिउ-पवणाहय-उल्लसिय- किसलय-करहि गएण । लासु पयासहिं तरु-लइय भमरावलि-गीएण ॥ [२९७५] जहिं सियाइं वि कुंद-कुसुमाई संजायहिं धूसरई पिय-विओइ कामिणि-मुहाई व । वियलंति य माणिणिहिं माण सविह दइयतुं दुहाई व ॥ लुद्ध-पियंगुहिं कुसुम-सिरि चत्त चवल असइ व्य । सावि-हु अंकुल्लय विहिय- सिरि नव-गहिय-पइ व्य ॥ २९७२.५.क. अवयंतिसि. ६. क. संगिर ८.क. देसंतरु. २२७३.६. क.ओहु. २९७४, ४. क. अमाइयओ. ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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