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नयचक्र
परिशिष्ट में हमने आलापपद्धति भी अनुवाद के साथ दे दी है तथा विद्यानन्द के तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक के छठे
और अन्तिम सूत्र में जो नयों का विवेचन है, जिसे किसी ने नयविवरण के नाम से संकलित किया था, उसे भी हिन्दी अनुवाद के साथ दे दिया है। इस तरह नयसम्बन्धी वह सब सामग्री एक साथ सुलभ कर दी गयी है।
अन्त में हम उन सभी महानुभावों के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं, जिनसे हमें इस कार्य में सहयोग मिला है। श्री दि. जैन प्रति. महावीरजी के महावीर भवन के संचालकगण, तथा व्यवस्थापक डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल, ऐ.प.स. भवन व्यावर के व्यवस्थापक पं. हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री, जैन सिद्धान्त भवन आरा के प्रबन्धक तथा कारंजा से प्रति भेजनेवाले पं. ब्र. माणिकचन्द्र चवरे, इन सभी के हम आभारी हैं। भारतीय ज्ञानपीठ के मन्त्री श्री लक्ष्मीचन्द्रजी और ग्रन्थमाला सम्पादक डॉ. ए.एन. उपाध्ये के भी हम आभारी हैं। डॉ. उपाध्ये प्रूफों को बड़ी सावधानी से देखते हैं और अशुद्धियों पर गहरी दृष्टि रखते हैं। डॉ. गोकुलचन्द्रजी तो इस सब कार्य के माध्यम ही हैं।
श्रुतपंचमी, वी.नि.सं. २४६७ श्री स्याद्वाद महाविद्यालय भदैनी, वाराणसी
-कैलाशचन्द्र शास्त्री
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