Book Title: Nanarthodaysagar kosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

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Page 11
________________ बात का सहज ही अनुमान कर सकते हैं कि इस तरह की कोश-रचना में किसी कोशकार को कितना अध्ययन करना होता है और विविध विषयक कितने ग्रन्थों का रोमन्थन करना होता है ? बल्कि सिर्फ इतने से ही उसका काम नहीं चलता, उसे इस तरह को कोश-परम्परा में प्राप्त समस्त कोशों को भी देख जाना होता है। __ पं० मुनि घासीलालजी महाराज के इस कोश से हम कुछ शब्द लें। पृष्ठ २५/श्लोक १२८ में 'आत्मन्' (आत्मा) शब्द के ११ अर्थ दिये हैं—जीव (जीवात्मा), धृति (धैर्य), बुद्धि, पुत्र, ब्रह्म, मानस (मन), यत्न, स्वभाव, मार्तण्ड (सूर्य), परव्यानि । पृष्ठ ६३/श्लोक ३४१ में 'कुक्कुट' के ६ अर्थ दिए हैंतृणोल्का, स्फुलिंग, चरणायुध (मुर्गा), कृक्कुभ, शूद्रपुत्र, निषाद-तनय । पृष्ठ १/श्लोक १ में अंशु' शब्द के ५ अर्थ दिये हैं-प्रभा, किरण, लेश, वेश, विवस्वान (सूर्य) । पृष्ठ १६/श्लोक ९७ में 'क्षुल्लक' के ४ अर्थ दिये हैं-नीच, अल्प, कनिष्ठ, दुगंत (दीन-दुःखी)। पृष्ठ ११५/श्लोक ६२२ में 'छन्द' के ५ अर्थ दिये हैंअभिलाष, अभिप्राय, वश, रहस् (एकांत), विष । पृष्ठ ११६/श्लोक ६४४ में 'जननी' शब्द के अर्थ दिये है-माता, मजीठा, जटामांसी, दया, कटुका, यूथिका, चर्म-चटिका, अलक्तक । ऐसे शब्दार्थी से जहाँ एक ओर हमें कई प्रश्नों के समीचीन समाधान सहज ही मिल जाते है, वहीं दूसरी ओर कई सामाजिक रीति-रवाजों और सांस्कृतिक काल-बिन्दुओं को समझने में भी सहायता मिलती है। ___ मैं समझता हूँ प्रस्तुत शब्दकोष न केवल स्थानकवासी मुनि-परम्परा को चिर-गौरवान्वित करता है अपितु वैश्विक नानार्थ कोश-परम्परा के लिए भी एक उल्लेखनीय घटना है। मुझे विश्वास है कि इसके प्रकाशन के साथ ही स्थानकवासी समाज ऐसा कोई प्रयत्न अवश्य करेगा कि जिससे कोशविज्ञान की लुप्त होती परम्परा को पुनरुज्जीवन मिले और स्वाध्याय के निमित्त अभिनव पिपासा और रुचि का पुनरुभव हो । मैं इस/ऐसे प्रकाशनों से उत्पन्न संभावनाओं के प्रति काफी आशान्वित हूँ। ५ मई १९८८] -डा. नेमीचन्द जैन, सम्पादक "तीर्थकर" विचार मासिक [ १० ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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