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सप्तमः सर्गः। मा० म०-श्री मुनिसुव्रतनाथ के राज्य में बहुधारियों में अधर्मता (धनुहोमता या पुण्याहितता ) थीम कि यहां के लोगों में, मेघ मण्डल में ही सत्पथ-सन्मान ( भाकाश मार्ग) की हकापट धीन कि यहाँ के जनों के, लियों के कटाक्ष पर ही श्रवण (कान) का उलन करमा अर्थात् कान तक पहुंच जाना निर्भर था न कि वहाँ के लोगों में शास्त्रों का अथवा दिगम्बर मुनिषों का अनादर करना, और हाथियों में ही कदाचित् दान (मदधारा ) का लेप हो सकता था न कि वहां के लोगों में ।२६।।
रतिक्रियायां विपरीतवृत्ती रतावसाने किल पारवश्यं ॥
बभूव मल्लेषु गदाभिघातो भयाकुलत्वं रविचंद्रयान ॥३०॥ रतीत्यादि। विपरीतत्ति: विपरीता धृत्तिविपरीतवृत्तिः विरुद्धावरण पक्षे पुरुषपता रतिक्रियायां रत्वाः क्रियारतिक्रिया तस्यां । बभूव भवति स्म । पारवय परस्य यशः पाषशः तस्य भावः पारवश्यं शरीरादिपायाधीन पक्षं मूर्धापराधीमत्वं । रतावसाने रतस्याघसानं रतावसानं तस्मिन् सुरतति । बभूव । गवामिघातः गदानां ध्याधीना पक्ष पदाया: इंडस्य अमिघातः प्रहारः रोगबाधा दंडायुधातिः । “आयुधामयभ्रातृविष्णुषु गदः" इति नानार्थकोशे । मलेषु मल्लभदेषु । बभूव । भयाकुलत्वं भयेनाकुलो भयाकुलस्तस्य भाषा भयाकुलत्व भीतिकातरत्वं । पक्ष भया कांन्या आकुलस्वं संकीर्वात्वं । रविचन्द्रयोः रविश्ववश्व रविची तयोः सूर्यचंद्रमसोश्च । बभूव किल । भू सत्तायां लिट् । परिसण्यालंकारः ॥३०॥
मा. 10-रतिक्रिया में ही कदाचित् विपरीत वृत्ति ( पुष्पवृत्ति ) यो पर यहाँ के लोगों में विस्तारण नहीं था, संभोग के अन्त में ही पारवश्य (शिथिलता ) था पर यहाँ हे लोगों में परदन्यपराधीनता न थी, मल्लों में ही गदा के प्रहार का प्रचार था न कि वहाँ के लोग गद (व्याधि ) प्रस्त थे और चन्द्र तथा सूर्य ही कदाचित् भा (कान्ति) से परिपूर्ण न थे न कि यहाँ के लोग भयाकुल थे ।३०॥ इति निरुपमभत्क्या सानुरक्त्याऽवनम्रत्रिभुवनपतिचूडाचित्ररत्नांशुवा ।। विलिखितपदपीठराजपीठे स तस्थौ दशदशशतसंख्यान वत्सरान पंच चैव ॥३१॥
इतीत्यादि । सः मुमिसुत्रतप्रभुः । सानुरक्त्या अनुरमत्या सह धर्मत इति सानुरक्तिः सया अनुरागरक्तया निजियेत्यर्थः । इति पर्व प्रकारेपा | मिरुपमभक्त्या उपमाया निर्गता निरुपमा सा पासो भक्तिश्च निरुपमभक्तिस्तया उपमातीतभात्या। अपनम्नत्रिमुवनपतिचूदा. विचरतांशुवा प्रयाणां भुवनानां समहारमिभुषनं तस्य पतयः त्रिभुवनातयः अधनअतीत्येवं शोला: मवननाः ते च से त्रिभुवनपवयम्ध तेषां खूला तथोक्ता: चित्राणि च