Book Title: Munisuvrat Kavya
Author(s): Arhaddas, Bhujbal Shastri, Harnath Dvivedi
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 181
________________ ما هم नामः सर्गः । रुजालधिषणा तां निक्षिप्तपथलनायबुद्धि । भाजीजनत् प्राजनयन जने प्रादुर्भाव णिताल्लुङ । पुनः भूयः । उत्पततः उत्पतंतीत्युत्पत्तः उपर्यागच्छतः । नवन्दिाः प्रत्यप्रांदाः । एवं व्योष। नीयमाननगशेमुनिका नीयत इति नीयमानास्ते च त नगाश्च नीयमाननगाः त इति शेमुपिका नीयमाननगशेमुषिका तां आकृष्यमाणपर्वतधुद्धि प्राजीजनत् प्राग्भाचयतिस्म ॥ १४ ॥ . भा० अ०-मानो सभी सामुद्रिक प्रदेशों में उड़े हुए नतन मेघों ने समुद्र जल में मन्न पर्वतों को निकालने के लिये इन्द्र के द्वारा फेंके गये महा माल की तथा ऊपर की ओर उठे हुए मेघों ने आकाश को और पर्वन को बंधने को प्रवीणता को प्रकटित किया । १४! नो विद्म साभ्रमपराम्बुनिधेग्टंती विद्युत्वतां किमु ततिर्बडवानलार्ता ॥ वादतिसंतनिरुत धुनदीक्षणार्थ व्यारूढपाशिवनिता मकरीततिर्वा ॥१५॥ नो इत्यादि । परांबुनिधेः थपश्चालावंचुनिधिश्च तथोक्तस्तस्मात् पश्चिमयादः. पतेः सकाशात् । अन्न' सुरवत्म। अटती अजीत्यरंनी गच्छंती । सा दृश्यमामा विद्युत्वतां विद्यु रस्त्येषामित्ति विद्यु त्वंनस्तेषां विद्युत्वतां अन प्रत्यर्थ इति जस्त्वाभावः। ततिःराजिः। फिमु स्यावा । घडवानलार्ता यतवानलेनार्ता बडवाग्निबाधिता। बादंतिसंततिः वारि विद्यमाना तिनो बादतिनस्तेषां संततिः दन्तोपशोभितो जलगनसमूहः । उत्त भवेटिका धुनहीक्षणार्थ दिवा नदी धुनही तस्या ईक्षमा धु नदीक्षण धु नदीक्षणाय तथोक गंगानदीदर्शनाय । ध्यानपाशिवनिताः व्याकक्ष्यन्तेस्म व्यारूढाः पाशोऽस्यास्तीति पाशी तस्य वनिता पाशि. घमिताः व्यारूढाः पाशिवनिताः यस्यास्सा तथोक्ता वाहनस्वाधारूढवरुणस्त्रीसमेता। मकरीतति मकरीणां ततिस्तथोक्ता मकरस्त्रीनिकरो घेति । नाविझ न जानीमः । विद्. शाने लङ् । “विदो लटो वा" इति मसो मादेशः। संशयालंकारः॥१५॥ भा० अ०-मैं नहीं समझता कि पश्चिम समुद्र से आकाश तक चकर लगाती हुई विशु पंक्तियाँ है ? अथवा बाड़बालि से पीड़ित इस्तिसमूह है ? या पाकाश गंगा को देखने के लिये वरुण की त्रियों से सवारी की गयो मगरों की स्त्रियों का झंड तो नहीं है ॥ १५ ॥ नीरंध्रमभ्रपटलं पिहिताखिलघु जेतरां विधृतदीर्वतरांबुधारं ॥ देव्याः क्षितरुपरि लंबितदीर्घमुक्तामाले विशालमिव धातृकृतं वितानं ॥१६॥ नीरंधमित्यादि । पिहिताखिला अपिधीयतेस्म पिहिता "धान् इति धादेशः ।

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