Book Title: Munisuvrat Kavya
Author(s): Arhaddas, Bhujbal Shastri, Harnath Dvivedi
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 231
________________ 121 दशमः सर्गः। पृथुपचासौ सत्पथश्व लसंश्चासौ सत्पथश्च तथोक्तः सुन्दरमहाजनमार्गस्तं। आश्रितः भानीयतेस्म आश्रित: आसेवितः / अस्मि भवामि / अस भुवि लट् // 65 // मा० अ०—मित्थ्यात्व-कर्मसमूह से अत्यन्त आच्छन्न तथा कुमार्ग-गमनकी कारण. भूत मेरी छोनों आँखों के आशाधर सूरि की उक्ति-रूप अच्छे अंजन के प्रयोगसे स्वच्छ होने पर में ने जिनेन्द्र भगवान् के सत्पथ का आध्रय लिया // 65 // इस्यईहासकृतकाव्यरजस्य टीकायां सुखबोधिन्यां भगवदुभयमुक्तिवर्णनो नाम दशमस्सर्गः। .इति

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