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बन्धन रूप तन/ मन और वचन का आमूल मिट जाना ही। मोक्ष है। हासी मोक्ष की शुद्ध-शा में । अविटनर सुख होता है जिसे प्राप्त होने के बाद, यहाँ संसार में आना कैसे सम्भव है, तुम ही बताओ।
विश्वास को अनुभूति मिलेगी अवश्य मिलेगी। मगर मार्ग में नहीं, मंजिल पर।
और महामौन में डूबते हुए सन्त". और, महौल को अनिमेष निहारती-सी
"मूक माटी। iye 44 ये कुछ संकेत हैं 'मूक माटी' की कथावस्तु में, उसकं काय्य की गरिमा, कथ्य के आध्यात्मिक आयामों, दर्शन और चिन्तन के प्रेरणादायक स्फुरणों के।
इन सब के अतिरिक्त और बहुत कुछ प्रासंगिक और आनुषंगिक है इस महाकाव्य में, यथा लोकजीवन के रजे पचं मुहावरे, बीजाक्षरों के चमत्कार, मन्त्रविद्या की आधार-भित्ति, आयुर्वेद के प्रयोग, अंकों का चमत्कार, और आधुनिक जीवन में विज्ञान से उपजी कतिपय नवी अवधारणाएँ जो "स्टार-बार तक पहुंचती हैं।
यह कृति अधिक परिमाण में काव्य है या अध्यात्म, कहना कठिन है। लेकिन निश्चय ही यह हैं आधुनिक जीवन का अभिनव शास्त्र। और, जिस प्रकार शास्त्र का श्रद्धापूर्वक स्वाध्याय करना होता है, गुरु से जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करना होता है, उसी प्रकार इसका अध्ययन और मनन अभुत सुख और सन्तोष ढेगा, ऐसा विश्वास है।
यह 'भूमिका नहीं, आमुख और प्राक्कथन नहीं। यह प्रस्तवन हैं, संस्तुवन हैं-तपस्वी आचार्य सन्त-कवि विद्यासागर जी का, जिनकी प्रज्ञा और काव्य-प्रतिभा से यह कल्पवृक्ष उपजा है। टेिल्ला.
--लक्ष्मीचन्द्र जैन प्प ण:-र्ट
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सत्रह