Book Title: Manav ho Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ अपने प्रणाम अर्पित करता हूँ। सत्य के प्रति अडिगता और मानवमात्र से प्रेम जीसस की खासियत है। जीसस जैसा महापुरुष ही सूली पर चढ़ते वक्त यह कह सकता है, प्रभु! इन्हें क्षमा कर । ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं। पतंजलि से मुझे लगाव है । मेरी साधनागत अनुभूतियां और उपलब्धियां न केवल पतंजलि से मेल खाती हैं, वरन् उनकी बातों, उनके सूत्रों से, मुझे रहस्यों में भी उतरने में मदद मिली है । महावीर, जिन्हें जन्म से ही विपुल ज्ञान और शक्ति का स्वामी मानते हुए भी, वे वैवाहिक जीवन से गुजरे, कैवल्य की साधना में पूरे चौदह साल लगे, उसमें भी जन्मों-जन्मों की साधना साथ थी, सो अलग, अब अगर आम आदमी को लम्बा वक्त लग जाये, तो उदास होने की जरूरत नहीं है। महावीर उसके लिए आदर्श हैं। राम की मर्यादा, कृष्ण का अनासक्त कर्मयोग, मेरे लिए प्रेरक तत्व रहे हैं । श्रद्धा हो ऐसी, जिसके हम आनुषंगिक हो जायें। जीवन श्रद्धा का सहचर हो जाये । श्रद्धा इतनी मौलिक हो कि किसी और का प्रभाव हम पर प्रभा न हो पाये। किसी के तर्क हमें डिगा न पायें। किसमें क्या है, यह जानो और अपने को जो जम जाये, जिससे हम प्रेरित हो जायें, उन्हें अपना शीष समर्पित कर दो। अगर ऐसा होता है तो मानो जीवन का एक दीप तुम्हारे हाथ लग गया है। तुम प्रकाश के पथिक हुए। अन्यथा तुम साम्प्रदायिक हो जाओगे । तुम कट्टर हो जाओगे । धर्म के नाम पर तुम सुलहनामों की बजाय कलहनामा ही लिखते रहोगे । तुम तो जैन होकर भी, महावीर के नाम पर लड़ते हो । हिन्दु होकर भी राम के नाम पर झगड़ते हो । हाँ! अगर एक बाप के पांच बेटे हों, वे आपस में लड़ें तो बात समझ में आती है कि धन-दौलत बांटनी है । तुम तो परमात्मा के नाम पर लड़ते हो । धर्म के नाम पर झगड़ते हो । धर्म, जो मानव-मानव को जोड़ने के लिए जन्मा, सम्प्रदाय, मत, पंथ के दायरों में आकर खतरनाक हो गया है। एक आवाज पर कि इस्लाम खतरे में है या हिन्दुत्व खतरे में है, मारकाट मच जाती है । गाजर-मूली की तरह मानव कटने लग जाते हैं । यह सब धर्म के नाम पर कलंक है । मनुष्य की स्वार्थी राजनीति का परिणाम है यह । आखिर क्यों ? क्योंकि सब जन्मजात धार्मिक हैं, कर्मजात धार्मिक कम हैं । फिर चाहे वे हिन्दू हों या ईसाई, जैन हों, पारसी अथवा मुसलमान । जैन कुल Jain Education International For Personal & Private Use Only मानव हो महावीर / ११ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90