Book Title: Manav ho Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 33
________________ के कितने माना किस धर्म पूजा करनी उपासना पर सर्वाधिक बल दिया गया है, लेकिन जीवन की पूजा करनी किस धर्म ने सिखायी? मनुष्य को मनुष्य बनाना किस धर्म ने अपना मकसद बनाया? मानव की सेवा के कितने मंदिर बने? भारत को ही लें। यहाँ दो तरह के धर्म हैं- एक तो वे जो ईश्वर का नाम जपने पर, पूजा-स्थलों में मानाएं फेरने पर जोर देते हैं। नतीजा यह निकला कि भारत की पौनी न सही, तो कम से कम आधी आबादी तो जीवन के वरदानों को हासिल करने के लिए ईश्वर को ही खुश करने में लग गई। यदि वह ईश्वर को भी सही तौर पर स्वयं में निहार लेती तो बात बन जाती, पर ईश्वर तो न जाने उससे कितना पीछे छूट गया। मनुष्य अपने ही हाथों माटी-पत्थर की बनाई छवियों को ईश्वर मान बैठा। उसे ही पूजने लगा। उस पर दूध और चंदन का अभिषेक करने लगा। ईश्वर की कितनी पूजा हुई, यह तो ईश्वर जाने, पर पंडे-पादरीपुजारियों के स्वार्थ जरूर सधते रहे । _____ कोई पूजा पाठ करे, मुझे एतराज नहीं, पर ईश्वर का इतना महान भक्त कहलाने वाला इन्सान, इन्सान को ही दुत्कार बैठे! इंसानइंसान के बीच सवर्ण-हरिजन, ऊंच-नीच, गोरा-काला की घृणा भरी लौह-दीवारें खड़ी करे, तो यह कौन-सी उपासना हुई। तुम आसमान के तारों को गिनते फिरो और पांव के पास खिले फूलों को रौंदो या नजर-अन्दाज करो, यह कौन-सा धर्माचरण या चरित्र हुआ? मानवता भूखी मरे और हम ‘अखंड दीप' के नाम पर घी का जुगाड़ करते फिरें। आखिर किस धर्म-प्रवर्तक ने कहा कि तुम मेरे लिए दीयों को घी पिलाते रहो। बेहतर होता, इंसान को ही एक दीप समझा जाता। उसे ही ज्योतिर्मय और जीवित रखने के लिए उसमें घी का अर्ध्य-दान किया जाता। मानव, मानव के काम आता। एक ओर अट्टालिकाएं बस रही हैं, दूसरी ओर झोंपड़ियां उजड़ रही हैं। भवन व्यक्ति के स्वार्थ हैं और गिरजा-गुरुद्वारा मनुष्य के परमार्थ है, तो क्या सड़क पर नंगे बदन ठंड में ठिठुरते हुए सोने वाले व्यक्ति को रहने के लिए एक कुटिया बनाकर देना परमार्थ नहीं है? क्या उसके बदन पर मोटा या सस्ता ही सही, एक कम्बल ओढ़ा देना परमात्मा की निष्काम-सेवा नहीं है? मंदिर जाते वक्त रास्ते में रो रहे किसी अनाथ बच्चे के आंसू पोंछना परमात्म-सेवा के बाहर है? प्रतिमूर्ति पर तुम सोने के जेवरात चढ़ाओ, यह तुम्हारी श्रद्धा का अतिरेक है। सम्मान करें जीवन का / ३२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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