Book Title: Manav ho Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 70
________________ पहले आगे बढ़कर उपलब्ध कर लो। मनुष्य आज जो समय विध्वंसक कार्यों में लगा रहा है, उसे सृजन में लगा सकता है। जिस समय को आप किसी की निंदा में लगा रहे हैं, उसे किसी की तारीफ करने.में लगाइये, किसी को मधुरता बांटने में लगाइये। आदमी ने दिमाग की तलवार से समय के तीन टुकड़े कर दिए। अतीत, वर्तमान और भविष्य। लेकिन ध्यान रखिये, समय कभी टुकड़े नहीं हो सकता। कहने को तो आदमी वर्तमान में रहता है लेकिन वह अतीत की यादों में डूबा रहना चाहता है, भविष्य की कल्पना करता रहता है। अतीत तो आखिर अतीत है, वह तो बीत गया। जो बात बीत गई उसे याद क्या करना। इसमें तो हमारा नुकसान ही है। सोचने वाला हमारी चेतना नहीं है, हमारा मन है। समय के साथ चेतना का संबंध है। मन के साथ शरीर का संबंध है। जब समय चुक जाएगा तो शरीर मर जाएगा। शरीर के साथ मन भी मर जाएगा। चेतना की मृत्यु नहीं होती इसलिये जो व्यक्ति अतीत को याद करता है वह मात्र मृत का संकलन ही कर रहा है। अतीत की स्मृति मात्र मृत का संकलन है और भविष्य अतीत की प्रतिध्वनि है। जो बातें कल हुईं वह आने वाले कल भी होंगी। कोई आदमी दो घंटे बात करता है। अगर उसका सार निकालना चाहो तो वे ही बातें होंगी जो कल कर चुका है। शब्द बहुत सीमित हैं, जबकि समय असीम है। असीम समय में आदमी सीमित बातों को दोहराता भर है। हर व्यक्ति अपने जीवन में एक शब्द को कम से कम एक लाख बार तो दोहराता ही है। जो व्यक्ति मौन का अभ्यस्त है, वह जानता है कि यदि मैंने मौन नहीं रखा तो जो बातें दिन में की हैं, वही रात में होंगी। हर आने वाला कल आज की ही पुनरावृत्ति होता है। हम जो आज कह रहे हैं, कल भी वही कहेंगे। मैं रोज-रोज बोलता हूं तो मैं जानता हूं कि बार-बार उसी बात को दोहरा रहा हूं। कहने का ढंग बदल जाता है, तरीका बदल जाता है। मूल बात तो यह है कि मैं चाहता हूं, आदमी को समय का बोध हो जाए। वह समय का मूल्य समझ जाए, समय का बोध हासिल कर ले। किसी को याद करते हो तो मन याद करता है। कल्पनाएं करते हो तो वह भी मन करता है। चेतना केवल वर्तमान में है। जो बीत गई मानव हो महावीर /६६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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