Book Title: Manav ho Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 76
________________ चलेगा कि पंखुड़ियां किस तरह खिल रही हैं? जीवन में यह बड़ा अभिशाप होगा अगर खिलती हई कलियों को आपने बंद कर लिया हो। ये पंखुड़ियां अगर खिल रही हैं तो खिलने दीजिए। जीवन से आप प्रसन्न रहें या अप्रसन्न, आदमी कली व फूल, दोनों रूपों में गिरेगा। ईमानदार व बेइमान दोनों की मृत्यु निश्चित है। महावीर भी मरे, गोशालक भी मरा। दुर्योधन भी मरा और युधिष्ठिर भी मरा। दुनिया में आकर हमेशा के लिए कोई नहीं रहता। मरते तो सभी हैं, फिर क्या आवश्यकता कि हम ईमानदार बनें? यह बहुत विचित्र बात है कि तुम करोगे, तब भी मरोगे और नहीं करोगे तब भी मरोगे, तो फिर करना किसलिए? कली की फूल तक की जो यात्रा है, वह इसलिए है कि तुम फूल की तरह खिलकर मरो, कली की तरह बिनखिले होकर रहकर नहीं। तुम ज्ञानी की तरह मरे तो तुम्हारी मौत भी जिंदगी है और अज्ञानी की तरह मरे तो तुम्हारी जिंदगी भी मौत है। खिलकर या पाकर मरे तो कोई तमन्ना शेष नहीं रह जाएगी कि कुछ करना, कुछ पाना, कुछ होना शेष है। तब एक परम तृप्ति होगी। मृत्यु के द्वार पर कोई विरला इन्सान ही होगा, जो परमतृप्ति के साथ मृत्यु को वरण करता है। मृत्यु की वेला को वही व्यक्ति आनंद के साथ स्वीकार कर सकता है, जो अपनी जिंदगी को फूल के रूप में खिला चुका है। अमृत हो चुका है। जब तक प्रकाश को उपलब्ध नहीं हुए हो तब तक जिंदगी आपाधापी, प्रतियोगिता व प्रतिस्पर्धा की जिंदगी होगी। गलाकाट संघर्ष की जिंदगी होगी। जिंदगी जीने में कोई आनंद नहीं आता, बस जी रहे हैं, जीने का कोई अर्थ नहीं है। कोई साठ वर्ष तक जिए और उससे पूछो कि तुम्हारी साठ वर्ष की जिंदगी का क्या निष्कर्ष रहा? तो वह कहेगा कि यह तो मैंने सोचा ही नहीं। ऐसा अवसर ही नहीं आया कि मैं अपनी जिंदगी के बारे में, परिवार के साथ संबंधों के बारे में गहन विचार करूं। एक प्रसंग है। एक मुल्ला का विवाह सत्तर वर्ष की आयु में बीस वर्षीय एक युवती के साथ हुआ। वह सोचा करता कि मन्नतों के बाद पहली बीवी नसीब हुई है। बीवी जैसा कहती, मुल्ला वैसा ही करता। वह कहीं मुल्लाजी को छोड़ कर न चल दे, इसलिए हर हुक्म मानव हो महावीर /७५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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