Book Title: Manav ho Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 80
________________ अनूठा सन्त है। सम्राट एक पंक्ति में अपनी समस्या का हल खोजने सन्त के पास पहुँचा। सम्राट ने अपनी प्रार्थना दोहराई, तो संत ने कहा कि मुझे तो ज्ञात नहीं है। मैं तो कुछ नहीं बता सकता। हाँ, मेरे गुरुजी ने मुझे एक तावीज दिया था, जिसमें सारी दुनिया भर के शास्त्रों का निचोड़ है। चाहो तो तुम ले जा सकते हो, पर शर्त यह है कि इसे तभी खोलना जब अपने आपको पूर्णतया संकटग्रस्त व असहाय पाओ। कुछ समय उपरांत सम्राट के राज्य पर पड़ोसी राजाओं ने हमला बोल दिया। सम्राट की सेना ने मुकाबला किया, किन्तु वह परास्त हो गई। तब सम्राट अकेले ही घोड़े पर चढ़ा और राज्य के बाहर भागा। रात होने लगी, जिसके कारण अंधेरा भी गहरा रहा था। जंगली रास्तों को पार कर वह पहाड़ी तक पहुँचा, जहां से आगे जाना कठिन था, क्योंकि रास्ते में एक विशाल चट्टान आ गई थी। पीछे से घोड़े के टापों की आवाजें आने लगीं। उसने सोच लिया कि अब मृत्यु निश्चित है। उस परमवेदना की घड़ी में असहाय सम्राट को तावीज की याद आई। उसने तावीज को हाथ से उतारा और उसे खोला। तावीज में से एक कागज निकला। उसने उस कागज को पढ़ा और मुस्कुराया 'दिस टू विल पास' यह भी बीत जाएगा उसने सोचा कि यह कौनसा मंत्र हुआ कि 'यह भी बीत जाएगा।' उसने सुना कि घोड़ों के टापों की जो आवाजें आ रही थी, वे धीरे-धीरे कम पड़ने लगीं। वह तत्क्षण जाग गया। बात उसकी समझ में आ गई कि यह समय भी बीत जाएगा। सम्राट ने अपने सहयोगियों का सहयोग लिया। बचे हुए सैनिकों में उसने नया जोश भरा और जिन्होंने राज्य पर कब्जा कर लिया था, उनको खदेड़ बाहर किया। उसका पुनः राज्याभिषेक हुआ। चारों तरफ खुशियाँ मनाई जा रही थीं। उसने तावीज खोला और फिर पढ़ा, “यह भी बीत जाएगा।' यह पढ़ते ही उसके चेहरे पर उदासी छा गई। चारों तरफ खुशियां थीं, जबकि सम्राट का चेहरा मुरझाया हुआ। सभासदों ने सम्राट से उदासी का कारण पूछा कि इस खुशी के माहौल में आपका चेहरा मुरझाया क्यों है? उसने अपने मंत्रियों से कहा कि तब अनुकूल परिस्थितियां थीं, लेकिन मैं नासमझ बना हुआ था। फिर प्रतिकूल परिस्थितियां आईं, मैंने अपने आपको उपेक्षित समझ लिया था। आज फिर अनुकूल मानव हो महावीर | ७६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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