Book Title: Manav ho Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 77
________________ उठाता | मुल्ला जब मस्जिद जाने के लिए घर से निकलता तो बीवी कहती कि यहां से सीधा मस्जिद और मस्जिद से सीधा घर आना । मुल्ला कहता 'यही होगा सरकार । ' एक दिन मुल्ला मस्जिद पहुँचा। मौलवीजी की तकरीर हो रही थी । तकरीर के बाद मौलवीजी ने कहा, 'आज जो मेरे साथ जन्नत में चलना चाहें, चल सकते हैं । आज आखिरी दिन है। जो चलना चाहें, वे मेहरबानी करके हाथ खड़े कर दें ।' सभी ने अपने हाथ खड़े कर दिए, सिवाय मुल्ला के । मौलवीजी ने पूछा, 'क्या बात है ? तुमने अपना हाथ ऊपर नहीं उठाया। क्या तुम्हें जन्नत में नहीं चलना है ?" मुल्ला ने कहा, 'बीवी का हुक्म है कि घर से मस्जिद और वहां से सीधा घर आना । बीच में कहीं मत जाना । ' मुल्ला सीधा घर पहुँचा । वह प्यासा था, इसलिए अपनी बीवी से कहा कि जरा एक गिलास पानी देना तो बीवी ने कहा, मैं तो सुबह से काम करते-करते थक गई हूँ, वह जो घड़ा पड़ा है, उससे खुद भी पानीपी लो और मेरे लिए भी लेते आओ । मुल्ला बेचारा क्या करता । अब तो हद ही हो गई थी। बीवी को जो भी काम करवाना होता था, तो वह सुबह-सुबह ही उन कामों की 'लिस्ट' मुल्ला को थमा देती। वह लिस्ट से हटकर एक काम भी नहीं कर सकता, बीवी का आदेश जो ठहरा । एक दिन मुल्ला को लिस्ट थमाकर बीवी कुएँ पर पानी भरने गई। उसका पांव फिसला और वह कुए में जा गिरी। वह चिल्लाई, 'बचाओ ! बचाओ !!' 'मुल्ला ने लिस्ट टटोली और कहा,' माफ करना, यह तो लिस्ट में लिखा हुआ ही नहीं है । ' · तुम्हारी जिंदगी भी इसी तरह चल रही है । सोचो! क्या तुम्हारी जिंदगी में जीने और मरने के बीच कोई फर्क है ? इसीलिए कहता हूं कि कली की तरह मर गए तो उसके कांटों से तो घिरे हुए हो ही मगर पुष्प होकर मरो तो वह परिपूर्णता जब मृत्यु करीब आती है, तो परम विश्राम व परम अहोभाव की लीनता लाती है । तब तुम इन्सान होकर नहीं, परमात्मा होकर मरते हो । जो जीवन को पवित्रता के साथ जीता है, उसकी मृत्यु परमात्मा से साक्षात्कार हो जाती है । शेष के लिए, परमात्मा की उपासना भी मृत्यु के द्वार खोल देती हैं। गहराई की बात यह है कि परिपूर्ण होकर जीना प्रज्विलत हो प्रज्ञा-प्रदीप / ७६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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