Book Title: Manav ho Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 69
________________ क्यों? कपड़े उतारे और निकल पड़े। आदमी बदल रहा है। भाव जगे या न जगे, हम ऊपर से बदलना जरूरी समझते हैं। दिखाना चाहते हैं कि देखो हम ऊपर से कितना बदल गए। एक मुखौटा उतारा है। समय ने तो न जाने कितने मुखौटे चढ़ा रखे हैं, यह किसी को पता है? ऊपर से तो कुछ-एक ही दिखाई देते हैं, अंदर तो बहुत सारे मुखौटे चढ़ा रखे हैं। ___आप किसी को एक गाली दीजिये, उसके भीतर सोया सर्प तुरंत जाग जाएगा। भीतर तो मुखौटो की भरमार है। इसीलिये कहता हूं जीवन सोये-सोये बिताने के लिए नहीं है। वह तो जाग कर जीने के लिए है। प्रमाद में नहीं, अप्रमाद में जीने के लिए है। व्यक्ति को अपने भीतर के प्रति हर पल सावधान, सचेत रहना चाहिए। व्यक्ति के लिए यही सम्यक्त्व का कारण बनता है। तभी व्यक्ति समय को उपलब्ध होता है। समय नष्ट करने वालों की कहीं भी कमी नहीं है। अब आप इस शहर को ही लीजिये। काम बहुत है, लेकिन निकम्मे बैठे हैं। सामने भोजन रखा है। हम कहेंगे पहले आप खाओ, सामने वाला कहेगा, नहीं, आप खाओ। दोनों एक-दूसरे को यही कहते चले जाएंगे और खाना ठण्डा हो जाएगा। जीवन भी ऐसे ही है, वह ठण्डा हो जाएगा। हम, एक-दूसरे की खुशामद में जिन्दगी काट देंगे। एक की तारीफ, दूसरे की आलोचना, इसी में जिन्दगी बीत रही है। इससे आपने अपना भला क्या किया। दूसरे की बदनामी तो कर ही दी। कहते हैं : एक महिला गर्भवती हुई। उसके पेट में दो बच्चे थे। नौ माह बीत गये लेकिन प्रसव नहीं हुआ। एक-दो-बीस और फिर अनेक वर्ष बीत गए। वह महिला पेट लिये ही बूढ़ी हो गई। जब उसकी मृत्यु नजदीक आने लगी तो उसने सोचा कि मरने से पहले पेट की सफाई तो करवा लूं। वह डाक्टर के पास गई। डाक्टर ने आपरेशन कर पेट काटा तो देखा कि दो प्रौढ़ भीतर बैठे हैं लेकिन बाहर नहीं आ रहे। कह रहे हैं, पहले आप जाइये, दूसरा कहता है नहीं, पहले आप.......! और इसी में माँ बेटे चल बसे। प्रमादवश कोई आगे नहीं आ पाया। आदमी ऐसे ही जिन्दगी बिता देता है, समय व्यर्थ चला जाता है। पहले आप, पहले आप की आदत छोड़ो और खुद समय की चेतना / ६८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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