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अर्धशती तक पूजा-पाठ करने के बावजूद मिलावट करने की आदत न छूटी हो, तो पूजा, पूजा कहाँ हो पाई! पाजी तो फिर भी पाजी ही रहा, भले ही एक बार नहीं, सौ बार हज कर लिया हो।
धर्म कहता है । इच्छा निरोधस्तपः' इच्छाओं पर नियंत्रण कर लेना ही तप है। अगर जिन्दगी में दूस-दस मास क्षमण करने के बाद भी वही वासना, वही क्रोध की तरंगें रहीं, तब तपस्या क्या हुई। तब तो आदमी ने अपनी काया को ही कष्ट दिया। शरीर के साथ ज्यादती की। हम खाना नहीं खाएंगे। एक माह तक मासक्षमण करेंगे। हमने किया क्या? बस खाना नहीं खाया, शरीर को जरूर कष्ट दिया। लोग मासक्षमण पूरा करने के बाद बैण्ड बजवाते हैं, जैसे किसी की शादी हो रही है। ये मास-क्षमण दुनिया में प्रतिष्ठा पाने के लिए किया या आत्मा के कल्याण के लिए?
धर्म संदेश देता है कि किसी को दायें हाथ से दान दो, तो बायें हाथ को भी पता नहीं चलना चाहिए। ठीक वैसे ही मासक्षमण भी करो तो खुद के घरवालों को भी पता नहीं चलना चाहिए। एक लाख रुपये का दान देकर समाज में प्रतिष्ठा अर्जित करने वाला कीर्तिदानी कहलाता है। अगर हो-हल्ला मचाकर दिया गया ऐसा दान बेकार है तो बैण्ड बाजे का मासक्षमण कितना उपयोगी होगा, खुद ही इस पर विचार कर लीजिये।
___ हर व्यक्ति भूखे पेट नहीं रह सकता, लेकिन मन को सुधार सकता है। मास-क्षमण की तपस्या के अंतिम दिन कोई अपरिग्रह संबंधी व्रत नहीं लिया जाता। अधिक से अधिक आभूषण शरीर पर लाद लिये जाते हैं। खुद के पास न होंगे तो मांग कर लाये जाएंगे। जब मैं किसी दीक्षा-समारोह को देखता हूं तो ताज्जुब होता है। दीक्षा की पत्रिका में दीक्षार्थी का जो फोटो देखता हूं, उससे कहीं वैराग्य की झलक दिखाई नहीं देती। जितनी राग की झलक उस पत्रिका से मिलती है, उतनी तो उसने अपनी जिन्दगी में भी नहीं देखी होगी। शादी में कोई दूल्हा भी इतने गहने नहीं पहनता होगा, जितने दीक्षा के वक्त पहने जाते हैं। पता नहीं बाद में पहनने को मिले या नहीं, अभी तो अपने मन की निकाल लें।
जब वैराग्य हो गया और मुनि बनना है तो फिर ये ताम-झाम भी
मानव हो महावीर / ६७
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