Book Title: Manav ho Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 66
________________ राह में उन्हें सूचना मिली कि महावीर का निर्वाण हो चुका है, वे परम भगवत्ता को उपलब्ध हो चुके हैं तो गौतम खूब रोये। उसका रोना स्वाभाविक था। जिन्होंने जीवन भर अपने पास रखा, लेकिन मृत्यु के समय दूर भेज दिया। जब वह छाती पीट-पीट कर रोने लगा तो दूसरे आदमी ने कहा - 'गणधर, अब रोने से कुछ नहीं होगा। संभलो, चेतो, महावीर का तुम्हारे लिए संदेश है। क्षण भर का भी प्रमाद मत करना। गौतम ने पूछा - 'क्या'? उसने बताया कि मरने से पहले महावीर ने तुम्हें याद किया था। वे तुम्हारे लिए एक सूत्र छोड़ गए हैं। सूत्र यह है - 'हे गौतम! जब तू सारे संसार के समुद्रों को पार कर चुका है तो अब किनारे पर क्यों बैठा है। जल्दी कर, छलांग लगा और पार हो जा। तूने अगर अब भी विलंब किया तो यह मौका फिर नहीं आएगा, तेरी नैया किनारे पर ही डूब जाएगी।' सच कहा महावीर ने। जीवन एक नैया ही तो है। यह शरीर एक नाव है, जिसमें कई छेद हो गए हैं और पानी भर रहा है, उसे नहीं छोड़ा तो डूब जाएगा। बस एक छलांग लगानी है और तुम समय के पार होओगे। यह सुनकर गौतम जैसे गहरी नींद से जागे। यही वह सूत्र था जिससे गौतम को परम ज्ञान 'कैवल्य' प्राप्त हुआ। ‘गौतम! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर।' 'समयं गोयम मा पमायए'। जो व्यक्ति समय के प्रति सदा जागरूक और सक्रिय रहता है, वह धन्य है। जो लोग प्रमाद में पड़े हैं, वे सोये हुए हैं। उनके लिए कलियुग है। वे अधन्य हैं, वे कृतपुण्य नहीं कृत-पाप हैं। वे जीवित नहीं, मृत हैं। उनमें कहीं प्राण का संचार नहीं है, जो समय के प्रति सावचेत व जागरूक नहीं है। जो व्यक्ति समये के प्रति पाबंद न हो, समय के प्रति अनुशासित न हो, वह अपने जीवन को कैसे अनुशासित रख पाएगा। जो व्यक्ति समय के मुताबिक नहीं चल सकता वह व्यक्ति कभी सिद्धांतों के मुताबिक भी नहीं चल पाएगा। विश्वास ही नहीं होता कि जिसके कारण जीवन बना है और जिसके अभाव में जीवन मृत हो जाएगा, उस तत्त्व के प्रति भी व्यक्ति जागरूक नहीं है। ऐसा व्यक्ति आत्मा के प्रति भी जागरूक नहीं हो सकता। वह व्यक्ति सामायिक तो जिन्दगी भर कर जाएगा, मगर उसकी सामायिक केवल गिनती भर होगी। वह कहता फिरेगा कि मैंने जिन्दगी में इतने हजार सामायिक कर ली पर वह सामायिक को उपलब्ध नहीं हो सकेगा और केवल गणना मानव हो महावीर / ६५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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