Book Title: Manav ho Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 67
________________ करने में ही लगा रहेगा। गणना होगी, पर संवर नहीं। ___ लोग माला जप रहे हैं मगर भीतर से कुछ भी नहीं बदला। मन अब भी अशांत है। मन में उतनी ही दुर्भावनाएं हैं। केवल माला गिनी जा रही है। राम का नाम नहीं गिना जा रहा। कल पांच मालाएं फेरी थीं, आज पांच और हो गईं। जैसे एक पैसे वाला रोज शाम को तिजोरी में राशि बढ़ाकर चैन पाता है वैसे ही कुछ लोग केवल माला गिनकर प्रसन्न होते हैं। तभी तो कबीर मजाक उड़ाते हैं - 'माला फेरत जुग भया, गया न मन का फेर । कर का मनका छोड़ दे, मन का मनका फेर ।' व्यक्ति के मन में कुछ और ही चल रहा है और हाथ माला फेर रहे हैं। इसलिए कबीर कहते हैं 'कर का मनका छोड़ दे, मन का मनका फेर।' व्यक्ति भीतर का मनका नहीं फेरता। माला फेरता है, गिनती करता है, वैसे ही सामायिक को भी गिनता है। उम्र के वर्ष भी यूं ही बीत जाते हैं। अस्सी साल के हो गए। उससे पूछो क्या चीज उपलब्ध की, तो मुंह लटक जाएगा। एक पोता अपने दादा के पास गया और उनसे पूछा - ‘दादाजी आपने इतने वर्षों का जीवन जिया है, आपने क्या उपलब्ध किया?' दादा का जवाब था 'कुछ नहीं!' जरा सोचिये जो चीज अस्सी वर्ष तक नहीं प्राप्त कर सके, उसके लिए अब तड़फ रहे हैं। समय को व्यर्थ ही गंवाया जा रहा है। एक पल कई गुल खिला देता है। उसी क्षण कोई पैदा हो रहा है तो कोई मृत्यु को प्राप्त हो रहा है। हर व्यक्ति मृत्यु की कतार में खड़ा है, जाने कब, किसका बुलावा आ जाए। नम्बर तो सभी का आना है। किसी का आगे तो किसी का पीछे। , जो व्यक्ति प्रमाद में जीता है वह सोये-सोये जी रहा है। वह कलि है। वह ऊपर-ऊपर भले ही सामायिक का, धर्म का लबादा ओढ़ ले, भीतर से वह कोढ़ का रोगी ही रहेगा। भीतर वही वासना भरी पड़ी हैं। किसी ने सौ बार सामायिक कर ली लेकिन अब भी उसके मन में क्रोध की तरंगे हैं तो क्या उसकी सामायिक सध गई? नहीं! किसी व्यक्ति ने अस्सी बसंत प्रतिक्रमण किए और उसके प्रतिक्रमण उसे पापों से न बचा पाए हों तो ऐसे प्रतिक्रमण किस काम के? समय की चेतना / ६६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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