Book Title: Manav ho Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 54
________________ डांटने से कोई फायदा नहीं। व्यक्ति संभला, लेकिन स्याही की दवात फूटने के बाद। घटना के बाद संभलो या न संभलो, कोई अर्थ नहीं रखता। रास्ते से गुजर रहे हो, गुजरते समय स्याही की दवात देख ली, उसे रास्ते से हटाकर ऊंची जगह पर रख दो, तो समझदारी हुई। लेकिन जो लोग पहले से ही सावचेत हैं, वे स्याही की दवात को बीच रास्ते में रखते ही नहीं। ऐसे लोग बुद्धिमान हैं, प्रज्ञावान हैं। उनमें कोई मनीषा है। वे खुद कुछ-न-कुछ कर गुजरते हैं। मेरे सम्बोधन समझदार लोगों के लिए हैं, प्रज्ञावान तो अपने आप में संबुद्ध है, संभला हुआ है। मेरा आह्वान समझदारों के लिए है। ऐसे लोग ही मुद्दे की बात समझ पाएंगे। नासमझ नहीं समझ पाएगा। अगर किसी नासमझ आदमी को परामर्श दिया जाएगा तो उसका अर्थ होगा, किसी बंदर को परामर्श देना जो पागलपन ही कहलाएगा। उसमें परामर्श देने वाले का ही नुकसान होगा। चिड़िया ने बंदर को एक बार परामर्श दिया था, बंदर ने उसका घोंसला ही उजाड़ दिया। व्यक्ति को जैसे ही समझ आती है, उसके जीवन में क्रांति घटित हो जाती है, जीवन में बड़ा परिवर्तन, बदलाव आ जाता है। वह विचार और समझदारी ही क्या, जो हमारे जीवन में बदलाव न लाए? यदि हमने क्रोध के बारे में सोचा, चिंतन किया और फिर भी क्रोध किया तो वह चिंतन किस काम का? मनुष्य की मुक्ति तो तभी संभव है, जब वह जितनी गहराई से क्षमा और प्रेम की बातें करे, उतनी ही गहराई के साथ अपने भीतर प्रेम व क्षमा को रखे। गहराई में तो क्रोध बसा है, वासना भरी हुई है और जब ऐसा है तो ऊपर का दिखावा महज एक छल है। भीतर की गहराई तक क्षमा तथा प्रेम की भावना होगी तभी व्यक्ति के जीवन में क्रांति घटित होगी, मुक्ति होगी। जितना गहरा अंधकार है, उतनी ही गहराई तक प्रकाश जाएगा तब ही जीवन के अंतःस्थल से प्रकाश की किरणें फूटेंगी, अंधकार नेस्तनाबूद होगा। हमें विचार करना होगा; विचार किसी परमात्मा, शास्त्र, धर्म आदि के बारे में करना जरूरी नहीं है, विचार केवल अपने बारे में करने की जरूरत है। अपने बारे में विचार करना ही जीवन के द्वार पर अध्यात्म की दस्तक होगी। जीवन के क्षितिज पर अध्यात्म का प्रकाश होगा। हमें अपने बारे में विचार करना होगा कि हम क्या हैं, हमारी मानव हो महावीर | ५३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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