Book Title: Manav ho Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 61
________________ समय मनुष्य की चेतना है । जिसे समय की चेतना उपलब्ध है, वह व्यक्ति आत्मवान है, स्वयं को उपलब्ध है । महावीर ने अध्यात्म के समस्त धरातलों पर समय के ही कबूतर उड़ाये हैं। समय के ही महल - मेहराब खड़े किए हैं। यह कम महत्व की बात नहीं है कि महावीर ने अपनी समस्त साधना और आराधना का सार 'सामायिक' को बताया । यह महत्वपूर्ण बात है कि 'सामायिक' का निर्माण समय से हुआ है । समय की चेतना महावीर ने अपने सिद्धांतों को दूसरा नाम 'समय' दिया। मनुष्य की आत्मा को दूसरा नाम 'समय' दिया । ध्यान का दूसरा नाम 'समय' दिया । महावीर के लिए आत्मा भी समय है, सिद्धांत भी समय है और ध्यान भी समय है । जो समय को उपलब्ध है, वह सामायिक है । महावीर की 'सामायिक' पच्चीस सौ वर्षों तक जीवित नहीं हो पाई, लेकिन जब अल्बर्ट आइंस्टीन ने समय के संदर्भों की खोज की तो महावीर की सामायिक फिर जीवित हो सकी। यहाँ मैं सामायिक को एक विशेष अर्थ में ले रहा हूँ - यह परम्परागत सामायिक नहीं है। मेरे लिए समय की चेतना ही सामायिक है । जीवन में जितनी भी गतिशीलता है, उसका आधार समय ही है । समय न हो तो यह गति, प्रगति कुछ न होगी । आदमी पदार्थ होकर समय की चेतना / ६० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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