Book Title: Manav ho Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 48
________________ का पता न चलेगा। सब हम पर ही निर्भर करता है। आप किस दृष्टिकोण से आ रहे हैं, इस पर निर्भर करता है। कचरे की तलाश में आओगे तो ऐसा बहुत-सा कचरा है जो वापसी में आपके साथ जाएगा । अगर कुछ ग्रहण करने को गमला लेकर आए हो तो सुगंधित होकर जाओगे । फूलों से अभिषिक्त होकर । प्रसन्न हृदय से धरती को देखो, तो धरती जैसा स्वर्ग कहीं नहीं मिलेगा । विपन्न - विक्षिप्त चित्त से नजर मुहैया करो, यहां सिवा नरक के तुम्हें और कुछ दिखाई ही नहीं देगा। नजरों को सुधारो । काले चश्मे से हर दीवार काली ही नजर आएगी। भीतर अशुद्धि है, तो तुम्हें शुद्ध / शुभ कैसे दिखाई देगा । कहते हैं : एक बिच्छु ने अपने मित्र केकड़े से कहा, मुझे नदी की सैर करवा दो । केकड़े ने कहा, तुम ठहरे बिच्छु, कहीं काट खाया तो! बिच्छु हंसा, कहने लगा 'भले मानुष! जरा सोच तो सही, अगर मैंने तुम्हें डंक मारा, तू डूबेगा - मरेगा, तेरे साथ मैं भी तो डूबूंगा मरूंगा । ' केकड़े को बिच्छु का तर्क समझ आ गया। उसने कहा तब ठीक है, मेरी पीठ पर बैठ जाओ । केकड़ा बिच्छू को पीठ पर लिए चला जा रहा था । बीच तालाब में बिच्छू ने केकड़े की पीठ पर डंक मारा । केकड़े ने कहा- 'भाई तुम्हारे तर्क का क्या हुआ ?' बिच्छू ने उसे समझाया - ' वह तो मेरा तर्क था, मगर डंक मारना तो मेरा स्वभाव है, मैं अपना स्वभाव कैसे छोड़ सकता हूं। वह बात किताबों की थी, यह हकीकत है' । आदमी के भीतर भी जहर भरा है, वह कितने भी तर्क दे दे, गहरी से गहरी बात कर ले, अंत में तो जहर ही उगलेगा । बिच्छू के काटे का जहर उतारा जा सकता है, लेकिन आदमी का काटा तो पानी भी नहीं मांगता। ऐसे लोगों के लिए कुछ रास्ते जरूर हैं, जो आदमी के काटे हुए हैं। आदमियों को तो आदमियों ने ही काटा है, उनके दुर्व्यवहार ने ही परास्त किया है । भीतर कचरा है तो बाहर भी कचरा ही आएगा । कोई आदमी शराब पीता है, इसलिए बेहोश है, ऐसा नहीं है । वास्तविकता तो यह है कि आदमी बेहोश है, इसीलिए शराब पीता है । पीने के कारण मदहोशी नहीं आती, बल्कि मदहोशी है, इसलिए आदमी Jain Education International For Personal & Private Use Only मानव हो महावीर / ४७ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90