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हो यहीं - जीवन की प्रमुदितता और पुलकितता में। मनुष्य का जगत् केवल परिवार - मोहल्ले तक सीमित नहीं है। जीवन का जगत् और जगत् का जीवन विराट है । संकुचितताएं त्यागें, विराट के आलिंगन के लिए बांहें फैलाएं, मानवता को गले लगाएं। यही मनुष्य के हाथों मनुष्यता का, जीवन का सम्मान है ।
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मानव हो महावीर / ३६
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