Book Title: Manav ho Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 28
________________ हृदय की सुन्दरता जीवन भर रहती है, जन्म-जन्मान्तर रहती है। मजनूं लैला का दीवाना था। क्या आप जानते हैं कि लैला गोरी नहीं सांवली थी। यह तो मजनूं की आंखों का कमाल था जो उसने अपने साथ लैला को भी चर्चित कर दिया। यह खूबसूरती चेहरे की नहीं थी। यह तो भीतर की सुन्दरता थी, जिसे मजनूं ने देखा। हम सजते हैं, संवरते हैं लेकिन यह सब ऊपर की सजावट है। हम भीतर नहीं झांकते और न ही भीतर से सजते-संवरते हैं। आखिर ऊपर-ऊपर की सुन्दरता हमें कब तक बचाएगी? . यह जग छल से भरा पड़ा है। चेहरा बहुत सुंदर मिलेगा लेकिन भीतर देखोगे तो गंदगी ही गंदगी नजर आती है। चेहरा ही खूबसूरत है तो क्या फायदा, दिल भी तो सुन्दर होना चाहिए। चेहरा तो मुखौटा भर है। अगर हम अपने जीवन को सुन्दर, अप्रतिम बनाना चाहते हैं तो जीवन का मूल्य समझना होगा। व्यक्ति के लिए जीवन से बढ़कर कुछ भी नहीं है। जीवन तो परम है। इससे बढ़कर इसके और कोई प्रतिमान नहीं हैं। लेकिन आदमी जीवन को आनंद से नहीं जी पाता। हमारे हाथ से जीवन की कला छूट गई है। हर आदमी अपने शरीर को ही सुन्दर बनाने का प्रयास करता है। अच्छे कपड़े पहनता है। सजता-संवरता है, लेकिन मन को सुन्दर बनाने का प्रयास नहीं करता। वह अपने घर को सजा लेगा, लेकिन हृदय के घर की तरफ ध्यान नहीं देगा। व्यक्ति चौबीस घंटे सुन्दरता की तरफ ध्यान देगा, लेकिन भीतरी सुन्दरता से विमुख रहेगा। चेहरे की खूबसूरती तो दो दिन की है। वह कुछ दिन आपका प्रभाव बनाए रख सकती है, लेकिन आत्मा की खूबसूरती ही शाश्वत होती है। वाग्भट्ट के सूत्र जीवन के लिए बहुत कीमती हैं। वे कहते हैं - दाता बनो। अपने द्वार पर आए व्यक्ति को कुछ दो। परमात्मा से प्रार्थना करो कि वह हमें इतना सामर्थ्यवान बनाए कि हम देने योग्य हों। हमारे द्वार पर आया कोई भी व्यक्ति खाली न जाए। दुश्मन भी आ जाए तो अतिथि मानकर सेवा करो। वह दुश्मन नहीं, भगवान का रूप है। घर के हर सदस्य को मेहमान समझो। घरवालों को भी मत भूलो। घर में कोई मेहमान आता है तो पली उसे मिठाई खिलाती है, मानव हो महावीर / २७ Jain Education International For Personal & Private Use Only ___www.jainelibrary.org

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