Book Title: Manav ho Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 27
________________ उसकी ओर आकर्षित होती है और अन्ततः कांटे में फंस जाती है। हमारा हाल ऐसा ही है। इंद्रियों के जाल में फंस कर हम अपना जीवन समाप्त कर बैठते हैं। ___ हर आदमी भूखा है। राजा हो या रंक, भूख सबको है। भूख है, क्योंकि आदमी के मन में अहंकार है। वह तारीफ़ का भूखा है। आदमी मित्र भी इसलिए बनाता है क्योंकि वह प्रेम का भूखा है, मैत्री का भूखा है। जीवन का खालीपन भरना चाहता है। भूख के कारण ही सब चल रहा है। भूख न हो तो परिवार, समाज आदि किसी की जरूरत नहीं होगी। ___मनुष्य पुत्र चाहता है, ताकि उसका वंश चले। विवाह करता है क्योंकि वासना की भूख है। समाज में दान करता है क्योंकि प्रतिष्ठा की भूख है। संन्यास लेता है, क्योंकि मुक्ति की भूख है। हर आदमी भूखा है, क्योंकि जीवन के सुखों को पाने की भूख है। जी रहे हैं, क्योंकि जीना चाहते हैं। रुग्ण होकर भी जीना चाहता है। चेहरा उतरा हुआ है, लेकिन जी रहा है। व्यक्ति के जीवन का यह तो कोई अर्थ नहीं हुआ। मुँह में डेढ़ इंच की जीभ भी क्या-क्या कमाल दिखाती है। आप भोजन करते हैं, वह जीभ पर कुछ ही क्षण रहता है। इसलिए इसकी आसक्ति क्या ठीक है? जरा विचार करें। विषयों के प्रति आसक्ति आदमी को कहीं का नहीं रखती। आदमी शरीर चलाने के लिए भोज और भोग में मशगूल रहता है। ऊर्जा का क्षय होता रहता है। यह फैक्ट्री तो यूं ही चलती रहती है। आखिर जीवन का उपसंहार क्या हुआ? शारीरिक स्वास्थ्य के साथ हृदय की सुंदरता, मानसिक स्वास्थ्य भी जरूरी है। लेकिन हमें हमारे हृदय की कितनी बार याद आती है? लिपिस्टिक लगाते समय इस चमड़ी के भीतर कितनी मूल संभावनाएं हैं, वहां तक क्या हमारी पहुंच हो पाती है? जीवन इसीलिए तो बदसूरत बना हुआ है। अन्तर-सौन्दर्य पर ध्यान न देने के कारण ही मनुष्य शरीर मात्र बनकर रह गया है। बाह्य-सौन्दर्य तात्कालिक प्रभाव देता है, पर अन्तर्-सौन्दर्य, हृदय का लालित्य प्रभावकता को शाश्वतता प्रदान करता है। मानव स्वयं एक मंदिर है | २६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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