Book Title: Manav ho Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 10
________________ दे सकती है। संकल्पों और भावों को दिव्यता दे सकती है। सूर का ताल और मीरा का नृत्य दे सकती है। हम महावीर या बुद्ध की याद के सहारे उन महापुरुषों तक पहुंचे, उससे पहले कुछ बातों को समझें। इन बातों का संबंध महावीर और बुद्ध जैसी महान विभूतियों के साथ है, स्वयं हमारे साथ है। यदि हम स्वयं को छोड़ देंगे, केवल महापुरुषों की चर्चा करेंगे तो कोई अर्थ न होगा। बदला न अपने आपको जो थे वही रहे। मिलते रहे सभी से मगर अज़नबी रहे।। आज तक हमने जितना भी सुना, विडम्बना रही है कि सिर्फ महापुरुषों के बारे में सुना, अपने बारे में कुछ न सुना। महापुरुषों के बारे में बहुत सोचा, अपने बारे में कुछ न सोचा। बुद्ध के बारे में जाना, औरों को जाना, पर खुद अनबूझी पहेली रह गए। औरों की मुक्ति को पढ़ा, पर स्वयं मकड़जाल में उलझे रह गए। महावीर, राम, बुद्ध परमात्मा हैं, उनके बारे में सोचा जाना चाहिए, मनन किया जाना चाहिए। लेकिन परमात्मा का नम्बर भी दोयम है, पहला नम्बर हमारा स्वयं का है। जो व्यक्ति अपने बारे में नहीं सोच सकता, वह परमात्मा के बारे में क्या सोचेगा? जो अपने को न जान सका वह औरों को कैसे जान पाएगा? जिसके पास स्वयं का परिचयपत्र नहीं है, वह परमात्मा को कैसे पहचानेगा? कंधे पर राम नाम की चदरिया हो सकती है, लेकिन परमात्मा से परिचय नहीं हो सकता। परमात्मा मंजिल है, वह कोई सोपान नहीं है। व्यक्ति जब अपने आप तक न पहुँचा, आत्मा तक न पहुंचा, तो परमात्मा तक कैसे पहुंचेगा? व्यक्ति जब अपने भीतर ही नहीं पैठा, तो भीतर बैठे स्वामी से संवाद कैसे कर पाएगा? भीतर का संगीत ही नहीं सुना तो परमात्मा का संगीत कैसे पहचान पाएगा? व्यक्ति के भीतर अभी तो इतना कोलाहल है कि भीतर बैठे उस महान स्वामी का, अंतर्यामी का कोई स्वर, कोई संवाद, कोई माधुर्य हम तक नहीं पहुंच पाता। जब मनुष्य के भाव अहोभाव में रूपान्तरित ही नहीं हुए, जब स्वयं की मस्ती ही पैदा नहीं हुई, तब परमात्मा की मस्ती कहां से आएगी! इसलिए 'अपने' बारे में बातें करने के बाद ही कुछ मानव हो महावीर /६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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