Book Title: Manav ho Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 17
________________ महिमा बढ़ी, हमें क्या मिला। हमें तो महावीर से वह संबंध रखना है जिससे महावीर की तरह हमारी भी महिमा हो सके। हम महावीर हो सकें। महावीर के बाह्य रूप पर मत जाओ, उनकी अन्तरस्थिति पर जाओ, जिससे वे महावीर बने। जब देखो तब शास्त्रों की दुहाई मत दो वरन उस जीवन-चर्या को देखो जिससे महावीर 'महावीर' बने। उनके भीतर शास्त्र पैदा हुए, सिद्धांत बने। सिद्धांतों की चर्चा और उन पर विचार विमर्श करने से, वाद-विवाद करने से, तर्क-कुतर्क करने से हमें महावीर नहीं मिलेंगे। हमें तो उस अन्तरस्थिति पर जाना चाहिए, जिससे महावीर जन्मे, कोई सिद्धांत अनुस्यूत हुआ। महावीर ने कभी नहीं कहा कि मेरे सिद्धांतों पर चलो। महावीर ने कहा कि तुम स्वयं महावीर बनो ताकि तुम्हारी वाणी भी सिद्धांत बन जाए, तुम्हारी वाणी भी शास्त्र बन जाए। ऐसा प्रयास होना चाहिए। यह किसी का एकाधिकार या बपौती नहीं है कि शास्त्र किसी एक से पैदा हो। हमारे द्वारा ऐसा प्रयास होना चाहिए कि हमारी वाणी भी शास्त्र बन जाए, सिद्धांत बन जाए। इसलिए हमें महावीर की जीवनचर्या के बारे में सोचना चाहिए, चिंतन-मनन करना चाहिए। बाहर-बाहर या ऊपर-ऊपर हाथ फिराने से हमारे हाथ केवल राख लगेगी। उस राख के भीतर दबी ऊर्जा हमारे हाथ नहीं लगेगी। मेरे देखे आदमी के हाथ सिर्फ राख लगती है। आदमी मंदिर जाता है, लेकिन वहां रहने वाला स्वामी उसके हाथ नहीं लगता। वहां तो जलने वाली धूप की राख ही मिलती है। असल में महावीर की जीवन-चर्या और अन्तर्दशा पर चिंतन होना चाहिए, जिससे हम भी महावीर बन सके। तीसरी मुद्दे की बात यह है कि व्यक्ति तब तक महावीर नहीं बन सकता, जब तक कि वह यह नहीं सोचे कि महावीर भी मेरे जैसे ही मनुष्य थे। लोगों ने यह कोई बुद्धिमानी का काम नहीं किया कि राम, कृष्ण, महावीर को मनुष्य से हटाकर कोई पराशक्ति बना दिया। इसमें भी जबरदस्त प्रतिस्पर्धा चली। हिन्दुओं ने कहा कि शंकराचार्य सोने के सिंहासन पर बैठते थे। बौद्धों ने कहा कि बुद्ध स्वर्णकमल पर आसीन होते थे। जैनों ने कहा, हमारे भगवान जब बैठते थे तो पूरा समवसरण मानव हो महावीर / १६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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