Book Title: Manav ho Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 15
________________ बारे में तो दुनिया सब जानती है। मैं उन निजी चेहरों के बारे में कह रहा हं जो भीतर छपे पड़े हैं। जैसे ही निमित्त मिला कि सोया सर्प जाग जाता है। किसी व्यक्ति ने आपको गाली दी और आपको क्रोध आ गया। क्रोध भीतर सोया पड़ा था, गाली ने तो उसे जगाने में मदद की। क्रोध तो पहले से था। गाली बिलकुल ऐसे है, जैसे किसी कुए में बाल्टी डालो, उसमें पानी होगा तो बाल्टी में पानी आएगा और रेत होगी तो रेत आएगी। क्रोध से, वासना से, अंगारों से भीतर का कुआ भरा पड़ा है। दूसरा आदमी तो सिर्फ उसे जगा रहा है। जो व्यक्ति कर्मजात हिन्दु, कर्मजात जैन, कर्मजात बौद्ध है वह सही मायने में नेक इंसान है। वास्तव में आदमियों में कोई फर्क नहीं है। सारे फर्क तो जन्मजात स्वरूप को पकड़कर बैठने से हो जाते हैं। कर्मजात जैन और कर्मजात हिन्दु में कहीं कोई फर्क नहीं है। मैं तो कहूंगा कि इस्लाम में भी कोई फर्क नहीं है, बशर्ते आप कर्मजात मुसलमान हों। व्यक्ति अगर नेक जैन बन जाए, अच्छा जैन बन जाए तो भले ही किसी कुल में जन्म लिया हो, क्या फर्क पड़ता है। ऐसा कर लिया तो तुम अपने आप एक अच्छे जैन, एक अच्छे हिन्दू, एक अच्छे बौद्ध, एक अच्छे ईसाई बन जाओगे। इनमें कहीं कोई फर्क नहीं है। महावीर और बुद्ध एक ही युग में हुए, उनमें कोई फर्क नहीं है। फर्क तो उनके बाद आने वाली पीढ़ियों ने किया। महावीर ने सत्य और अहिंसा की बातें कहीं और बुद्ध ने भी। फिरकापरस्ती तो बाद में हुई। मनुष्य की, धर्म में रहने वाली राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण फिरकापरस्ती होती है। ___चाणक्य कहते हैं राजनीति पर धर्म का अंकुश होना चाहिये, पर बेचारा धर्म क्या करे, जब धर्म में राजनीति पूरी तरह काबिज हो जाये। मेरे देखे, फिरकापरस्ती वास्तव में राजनीति है, धर्मों का राजनीतिकरण है। धर्म मनुष्य के आचार-विचार-जीवन को सम्यक् बनाने के लिए है। राजनीति का सम्बन्ध मात्र व्यवस्था से है, व्यवस्थागत है। धर्मों का काम हर अन्तरहृदय में फूल खिलाना है। मनुष्य प्रामाणिक और ईमानदार हो, चित्त की समता बनाये रखे, पवित्र और प्रसन्न रहे, यही धर्म की पृष्ठभूमि है। सारे धार्मिक समान हैं। धार्मिकों में कोई भेद मानव हो महावीर / १४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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