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नर्मदा अ
महापुरान
अम्बई दह बणाएं वहि सयणई । कई मासिम दुव्ययणहं ॥ पहरेदारहर
जवच्छ परकम्मु कतई | 22-16.
निर्नामिकाका यह कथन वस्तुतः कवि पुष्पदन्तका कथन है, जो इस बातका प्रमाण है कि गरीबीभारतीय इतिहासको जन्मधुटीसे मिली । आध्यात्मिकता की सामन्तवादी व्याख्याओंोंने उसमें चार चाँद लगा दिये। जिस घर में वसन्स लानेवाले हों, कमानेका साबन मजदूरी हो वहाँ मुट्ठीभर घना और खल हो मूलकी ज्वाला शान्त करनेका एकमात्र साधन है ! गरीबोका यह चित्र दसवीं सदीका है । यह काल्पनिक नहीं, बल्कि वास्तविकताका प्रतीक कथन है। ऋषभ तीर्थंकर जैन मान्यताके अनुसार करोड़ों वर्ष पहले हुए, निर्नामिकाका परिवार, उनके तीर्थंकर वननेसे बहुत पहले हुआ। इसका अर्थ है कि इस देशमें घी-दूधकी नदियाँ कभी नहीं नहीं, यह सफेद मूठ है कि यह देश कभी सोनेकी चिड़िया था। वह जितना सोनेको चिड़िया का उतना अमीरोंका भारत था। इसमें कोई शक नहीं कि निर्मामिकाकी गरीबी दूर हुई, मिहिताब मुनिके सदुपदेश से यह मैनधर्म ग्रहण करती है, और कई उत्तम पर्यायके बाद श्रेयांस राजा बनती है । ऐसे उदाहरण दूसरे मतोंके पुराणोंमें भी मिलते हैं। भगवान् रामको शवरीके जूठे बेर जितने पसन्द हैं, उतने सेटका ऐश्वर्य नहीं। परन्तु भगवान्की पूजा-उपासनाका काम तो बमसे ही चलता है, गरीबो नहीं। मुझे इसमें सन्देह नहीं कि निर्मामिकाकी गरीबी मिट गयी, परन्तु क्या इसे देशकी गरीबी मिटानेका मुसखा बनाया जा सकता है ? भारतीय माध्यात्मिक विचार समाजमें सन्तुन बनाये रखनेके लिए स्वाग सादगी और सीमित भोग पर जोर देते हैं, जिससे विषमताकी खाई कम हो, व्यक्ति तनावोंसे मुक्त हो ।
समयचक्र: काळ हट्ट
अच्युते वेग पुष्पमाला मुरझानेपर मृत्युकी कल्पनासे काँप उठता है । वह कहता है :
अद्य सोमसहाय महारत । संचल्लिय चल सति रवि बल ॥
किह कि काल रहट्ट पार । घडिमालइ कंषिट बाउणीरु |
महाकालरूपी रहटके संचार में कैसे बच सकता हूँ। उसके चंचल चन्द्र और सूर्यरूपी बैल चल रहे हैं, उनमें एक सौम्य भावका है और दूसरा महारौद्र है। घड़ियों ( घटिका ) की मालाबोंसे आयुरूपी
जल
रहा है ।
भाग्य ही सब कुछ है।
प्रथम भवमें जयवर्मा ( ऋषभ ) के पिता श्रीषेणने दीक्षा लेते समय छोटे पुत्र श्रोवर्माको राज्य दे दिया । जयवर्माको बुरा लगा। वह सोचता है
सुस बुद्धिवुहसणु ।
विहि बसेसु वि जलहि जले ॥
किं गुणगणु मण्णा सज्ज ऋष्णइ पुण्ण
जि मल्लत भुवणयले || 124.
सुमटपन बुद्धिका बुषपन सब समुद्रके जल में फेंक हो । गुणगणको क्यों माना जाता है, सज्जनका वर्णन किया जाता है, संसार में पुण्य ही भला है ।