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2 106 8 महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण एवं मस्तिष्क प्रभावित एवं सक्रिय होते हैं। व्यान-समस्त शरीर को प्रभावित करता है । अंगों की संधियां, पेशिया और कोशिकाएं इससे क्रियाशील रहती हैं। ध्यान रखें-1. आसन के बाद प्राणायाम करें। 2. दूषित वातावरण में प्राणायम न करें। 3. भोजन के बाद 3 घंटे तक प्राणायाम न करें। 4. प्राणायाम प्रातः (6 से 7 बजे) तथा सांय (5 से 6 बजे) करें। 5. प्राणायाम के लिए पद्मासन एवं सिद्धासन उत्तम है। 6. प्राणायाम के पूर्व मलाशय एवं मूत्राशय रिक्त हो। 7. तेज हवा में प्राणायाम न करें। 8. प्राणायाम के समय शरीर शिथिल एवं मुखाकृति सौम्य रहे । मन तनाव रहित रहे। प्राणायाम की महत्ता के विषय में 'ज्ञानार्णव' में कहा गया है
"जन्मशत जनितमग्रं, प्राणायामात विलीयते पापम् ।
नाड़ी युगलस्यान्वं, यतेजिताक्षस्य वीरस्य ॥" __ अर्थात् प्राणायाम से सैकड़ों जन्मों के उग्र पाप दो घण्टों में समाप्त हो जाते हैं। साधक जितेन्द्रिय बनता है।
प्रत्याहार-इन्द्रियों और मन को विषयों से पृथक कर आत्मोन्मुख करने की प्रक्रिया है। मन को ऊपर उठाना अर्थात मन का ऊर्वीकरण करना (आज्ञाचक्र में ले आना) प्रत्याहार की पूर्णता है। प्रत्याहार फलीभूत हो जाने पर योगी को संसार की कोई भी वस्तु प्रभावित नहीं कर पाती है। प्राणायाम के पश्चात् इस चिन्तन में लीन होना होता है। प्राणायाम से शरीर और श्वास वश में होती है। प्रत्याहार से मन निर्मल और निराकुल होकर आत्मा में निमज्जित हो जाती है।
धारणा, ध्यान और समाधि-युवाचार्य महाप्रज्ञ अपनी पुस्तक 'जैन योग' में कहते हैं- "जैन धर्म की साधना पद्धति का नाम मुक्तिमार्ग था। उसके 3 अंग है। सम्यक-दर्शन, सम्यक-ज्ञान, सम्यक चरित्र। महर्षि पंतजलि के योग की तुलना में इस रत्नत्रयी को जैन योग कहा जा सकता है। जैन साधना पद्धति में अष्टांग योग के सभी अंगों की व्यवस्था नहीं है। वहां प्राणायाम, धारणा और समाधि नहीं है। शेष अंगों का भी प्रतिपादन नहीं है।"
प्रत्याहार के अन्तर्गत मन आत्मा में लीन हो जाता है। इसमें स्थिरता और लीनता की दिशा में धारणा समर्थ है। धारणा से