Book Title: Mahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Author(s): Ravindra Jain
Publisher: Megh Prakashan

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Page 221
________________ .. है और बीजमन्त्र दिव्यशक्ति द्वारा प्रतिष्ठित शक्ति गर्भित होता है । इसे संकल्पी व्यक्ति ही भज सकता है। प्रश्न ९४. भव्य जीव द्वारा किये गये पंच नमस्कार नमन से (भक्त में) लोकोत्तर शक्ति प्रकट होती है। कैसे? भव्यजीव अर्थात् सम्यग्दृष्टि सम्पन्न निर्मल आत्मा जब णमोकार महामन्त्र का पाठ करता है तो उसमें आन्तरिक दृष्टि का विस्तार होने लगता है, वह परमगुरु और गुरु कृपा से धीरे धीरे सब कुछ देखने समझने लगता है । महान् आत्मा से निर्मल आत्मावल भक्त का साक्षात्कार अविलम्ब होता है । भक्त की शारीरिक मानसिक एवं आत्मिक निर्मलता में दिव्य एकाग्रता सहज एवं अविलम्ब पनपती है । विकृत चित्त एवं सांसारिकता में लिप्त चित्त में सहजता और आध्यात्मिक एकाग्रता दुर्लभ है। प्रश्न ९५. मन्त्र विज्ञान से क्या तात्पर्य है? . मन्त्र विज्ञान से तात्पर्य है मन्त्र को समझने और हृदयंगम करने की विशिष्ट ज्ञानात्मक एवं क्रियात्मक प्रक्रिया । यह प्रक्रिया बंधे विश्वास और परम्परा को त्याग कर ही आगे बढ़ती है। इस विज्ञान का कार्य है मन्त्र के पूर्ण स्वरूप और प्रभाव को प्रयोग के धरातल पर घटित करके उसकी वास्तविकता स्थापित करना । जब तक अध्येता तटस्थ एवं रचनात्मक दृष्टि सम्पन्न नहीं है तब तक वह इस प्रक्रिया में सफल नहीं हो सकता । हमें सर्व प्रथम पंच परमेष्ठियों के पूर्ण स्वरूप को गुणों को पूर्णतया समझना चाहिए और अपनी संकल्पात्मक मनस्थिति मन्त्राराधना के प्रति बनानी चाहिए । हमारा ज्ञान अनुभव में दलकर एवं प्रमाणित होकर ही पूर्णज्ञान (सिद्धि) बनता है । अन्ध श्रद्धा नहीं अपितु विवेक सम्मत श्रद्धा ही मन्त्राराधना में कार्यकर होगी । मन्त्र विज्ञान विश्लेषण से संश्लेषण की प्रक्रिया है । अहं का (अहंकार का) अहम् में विलय मन्त्र विज्ञान द्वारा स्पष्ट होता है । 2220R उत्तर:

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