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आ ही नहीं सकते । अब यह बात साफ है कि अडिग प्रभुविश्वास सम्यग्दर्शन है और इसकी पुष्टि भक्ति द्वारा होती है, तो प्रकारान्तर से इसी तथ्य को इस प्रकार भी समझ लें कि भक्ति के माध्यम से ही सम्यग्दर्शन का सुषुप्त बीज अंकुरित होता है । अत: भक्ति सम्यग्दर्शन की जननी है।
प्रश्न १०८. ध्वनि का दूसरा नाम नाद है - अथवा ध्वनि की
विकसित अवस्था नाद है । नाद आहतनाद और अनाहत नाद के रूप में दो प्रकार का होता है । समझाइए।
उत्तर:
हमारा जीवन हमारे भीतर से ही उत्पन्न की गयी ऊर्जा से चलता है। श्वासोच्छवास के माध्यम से उसे अधिक गतिशील बनाते हैं। .. यही ऊर्जा ध्वनि और शब्दों में पहले ऊर्जा (Energy) सुषुम्ना से होती हुई मूलाधार को स्पर्श करती है । फिर वहाँ से एक प्रकम्पन का रूप लेती हुई आगे बढ़ती है । स्वाधिष्ठान चक्र से उसको और गति प्राप्त होती है । इसके पश्चात् मणिपुर चक्र से अग्नितत्व ग्रहण करती है और हृदय चक्र से टकराती है । यहाँ उसे वायुतत्व प्राप्त होता है । वायु तत्व के प्राप्त होते ही यह ध्वनि नाद बनती है । यह . नाद कंठस्थान में आकर (विशुद्धि चक्र में आकर) आकाश तत्व को प्राप्त करता है । आकाश तत्व से मिलने के बाद कंठ और ओष्ठ के बीच के अवयवों के सहयोग से नाद विभिन्न वर्गों और शब्दों के रूप में बाहर प्रकट होता है । यह नाद हमारे मुख विवर के अनेक हिस्सों से टकरा कर तैयार होता है अत: आहत नाद कहलाता है । यही नाद जब विभिन्न स्थानों से टकराए बिना सीधा ही ऊपर सहस्रार चक्र तक चला जाता है, तब यह नाद अनाहतनाद कहलाता है । यही अनाहत नाद शब्द ब्रह्म है, मन्त्र है . और जागृत मूलाधार की सर्वोच्च अवस्था है।
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