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उत्तर
इन वर्णात्मक मातृकाओं में लौकिक एवं पारलौकिक अनन्तफल देने की अपार शक्ति है । जब ये मातृकाएं मन्त्रों में परिणत हो जाती हैं तो इनमें अपार ऊर्जा भर जाती है । इसका लाभ अज्ञानी और कुपात्र को नहीं होता । उदाहरणार्थ एक अज्ञानी और बुद्धि हीन जंगली व्यक्ति को एक करोड़ रुपये की कीमत वाला हीरा मिल भी जाए तो वह तो उसे एक काँच का टुकड़ा ही समझेगा। हमारे लाखों जैन भाई महामन्त्र को जपते हैं - ऊपर ऊपर से जानने का नाटक भी करते हैं, परन्तु उन्हें उसका पूर्णज्ञान, उसकी शक्ति और महिमा की जानकारी नहीं होती । श्रद्धा भी नहीं
होती । अत: वे सब कभी लाभान्वित नहीं हो पाते। प्रश्न ९८ मन्त्र विज्ञान को समझने के कितने स्तर हैं?
चार स्तर हैं - भाषा, अर्थ, ध्वनि (अभिप्रेतार्य) एवं सम्मिश्रण ।
फलितार्थ - स्पष्टीकरण - सर्वप्रथम किसी वाक्य, शब्द या श्लोक का भाषात्मक रुख पाठक
के सामने आता है। उसके बाद वह उसके स्थूल अर्थ को ग्रहण करता है । तीसरी स्थिति में यदि ध्वनि या व्यंग्या है तो वह मस्तिष्क में उतराता है । प्रत्येक पाठक धवनिग्राही होता ही नहीं है । चौथी अवस्था है निष्कर्ष या फलितार्थ की । इस प्रकार किसी भाषा के गद्य या पद्य को समझने का क्रम है जो अनजाने में ही घटित होता रहता है। यदि किसी सूत्र या मन्त्र को समझना है तो यह और भी कठिन होगा । परन्तु अध्येता या भक्त यदि निर्मल मानसिकता का है तो उसे कठिनता का बोध नहीं होगा। वर्ण मातृका शक्ति को उचारण और अर्थ ध्वनियों के आधार पर चार प्रकार से वर्गीकृत किया गया है - १. वैखरीस्थूल मातृका (कर्ण सम्पृक्त भाषा) २. मध्यमा सूक्ष्म (मानसिक स्तर)
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