Book Title: Mahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Author(s): Ravindra Jain
Publisher: Megh Prakashan

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Page 230
________________ लेकिन उस साँप ने मुझे नुकसान नहीं पहुँचाया । मैं वहाँ से डर कर आया और लोगों से पूछा कि यह काम किसने किया है? परन्तु पता न लगा । दूसरे दिन जब सामायिक के समय पड़ौसी के बचे को सांप ने डस लिया तब वह रोया और कहने लगा कि हाय मैंने बुरा किया कि दूसरे के वास्ते चार आने दे कर जो सांप लाया था, उसने मेरे बच्चे को काट लिया। बचा मर गया । पन्द्रह दिन बाद वह आदमी भी मर गया । देखिए सामायिक और णमोकार मन्त्र के प्रभाव से आया हुआ काल भी प्रेम का बर्ताव करता हुआ चला गया। प्रश्न १०४. इस पद्य का अर्थ समझाइए - "अहमित्यक्षरं ब्रह्म, वाचकं परमेष्ठिनः । सिद्ध चक्रस्य सद्बीजं, सर्वतः प्रणमाम्यहम् ।।" उत्तर: अर्हम् अक्षर (अविनश्वर) ब्रह्म है, परमेष्ठी का प्रतिपादक है, सिद्ध चक्र का सद्बीज है, मैं सम्पूर्ण रूप से (मन-वचन-काय से) इस ब्रह्म को प्रणाम करता हूँ। इस पद्य में अहम् शब्द की सार्वभौमता, आध्यात्मिक महिमा और लौकिक सिद्धि-कारकता को स्पष्ट किया गया है । प्रश्न १०५. इस पद्य का अर्थ कीजिए और इसके आधार पर जिन भक्ति (स्तुति) का महत्व बताइए। "विघ्नौधाः प्रलयं यान्ति, शाकिनी भूतपन्नगाः । विषं निर्विषतां याति, स्तूयमाने जिनेश्वरे ॥" उत्तर : जिनेश्वर के श्रद्धापूर्वक किये गये स्तवन से विघ्न समुदाय का नाश होता है । चुडैल, भूत और सों का भी विघ्न दूर होता है । विष निर्विष हो जाता है। 0 2298

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