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योग और ध्यान के सन्दर्भ में गमोकार मन्त2 1112 प्रमुख सात चक्र हैंचक्र
स्थान 1. मलाधार चक्र
मेरुदंड के नीचे मूल में 2. स्वाधिष्ठान चक्र
गुप्तांग के ऊपर 3. मणिपुर चक्र
नाभिक के ऊपर 4. अनाहत चक्र
हृदयं के ऊपर 5. विशुद्ध चक्र
कंठ में 6. आंज्ञा चक्र
दोनों भौहों के नीचे 7. सहस्त्रार चक्र .
मस्तक के ऊपर ये चक्र सदैव क्रियाशील रहते हैं और अपने मुख छिद्र में दिव्यशक्ति (प्रणावायु) भरते रहते हैं। इस शक्ति के अभाव में स्थूल शरीर जीवित नहीं रह सकता।
कुण्डलिनी-स्वरूप, क्रिया और शक्ति-यह मानव-मानवी के 'मेरुदण्ड के नीचे विद्यमान एक विकासशील शक्ति है । यही जीवन का मूलाधार है। यह हमारी रीढ़ के नीचे सुषुप्त अवस्था में पड़ी रहती है। इसको ठीक समझने और उपयोग करने की शक्ति प्रायःमानव में नहीं होती है । यह शक्ति लाभकारी भी है और नाशकारी भी। यदि पूर्ण जानकारी न हो तो इसे न छेड़ना ही उचित है । अनेक मनुष्यों में कभीअद्भुत अतिमानवीय एवं अति प्राकृतिक देवी एवं दानवी क्रियाएं देखी जाती हैं। यह सब अज्ञात रूप से जागी हुई कुण्डलिनी का ही कार्य है-आंशिक कार्य है। कुण्डलिनी-जागरण में बहुत-सी बातें घटित होती हैं-जैसे सोते-सोते चलना, रात्रि में स्वप्न दर्शन, अतिनिद्रा एवं अनिद्रा । किसी समस्या का त्वरित समाधान मस्तिष्क में बिजली की तरह कौंध जाना भी इसका ही चमत्कार है। मूलाधार में शक्ति संग्रहीत होती है। वहीं से सम्पूर्ण चक्रों में वितरित होती है। पृथ्वी और सूर्य के केन्द्रों से हम शक्ति-संग्रह करके मूलाधार में भरते हैं। इसी शक्ति को चक्रों की उत्तेजना के लिए वितरित भी करते हैं। कुण्डलिनी जागृत होने पर बी की नोक की तरह ऊपर को चढ़ती हुई अन्ततः जीवात्मा में प्रवेश करती है और लोकोत्तर चैतन्य उत्पन्न करती है। कुण्ड लिनी-जागरण के प्रभाव के सम्बन्ध में अनेक ऋषियों, सन्तों एवं