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संगीत के सात स्वर, सप्तर्षि, सात दिन, सात चक्र, सात नय आदि ७ संख्या का महत्व सूचित करते हैं । मन्त्र में कुल अक्षर ३५ हैं । इससे भी ७.४ ५ का क्रम बनता है । पाँचवें पद के लोए अथवा सब्ब पद को णमो सिद्धांत में मिला देने से यह ७-७ का क्रम बनता है । अत: सप्ताक्षरी मन्त्र पाठ को (णमो अरिहंताणं) ऋषियों और विद्वानों ने विशेष महत्व दिया है । अरिहन्त परमेष्ठी का प्रतीक रंग (श्वेत) प्रसिद्ध सात रंगों से बनता है ।
प्रश्न ८०. इस महामन्त्र के रचयिता कौन हैं?
उत्तर:
यह महामन्त्र अनाद्यनन्त है अत: इसके रचयिता का प्रश्न उपस्थित ही नहीं होता । मन्त्र शब्दों में निहित दिव्य शक्ति होती है, भाषा का स्थान उसमें द्वितीय और गौण होता है । अत: यह महामन्त्र अर्थ और भावशक्ति के आधार पर अनादि अनन्त है । सभी तीर्थंकर अपने अपने युग में इसका मनन करते हैं। इसकी भाषा युग युगान्तर में बदलती रहती है, पर वह भी मन्त्रात्मक और ऋषिकृत होती है । पूर्णतया जागृत मूलाधार चेतना का पुरुषोत्तम ही इसकी भाषा का सृजन कर सकता है । ऋषि मुनि प्रायः विज्ञापन से दूर रहते हैं अतः भाषाकार तो कोई रहा होगा, पर अज्ञात है । प्राकृत भाषा वैदिक काल के आस-पास की मानी जाती है । अत: यह मन्त्र भाषा के स्तर पर ५००० वर्ष पुराना तो
है ही और रचयिता उसी काल का कोई महान् ऋषि रहा होगा। प्रश्न ८१. इस मन्त्र को कितनी राग-रागिनियों में सस्वर प्रस्तुत
किया जा सकता है? . . यह मन्त्र संगीत की ५२ राग रागिनियों में गाया जा चुका है। मध्य प्रदेश के सागर जिले के शाहपुर गाँव के एक जैन सज्जन यह चमत्कार दिखा भी चुके हैं।
उत्तर:
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