Book Title: Mahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Author(s): Ravindra Jain
Publisher: Megh Prakashan

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Page 212
________________ . . इन रत्नों के विषय में कुछ मूलभूत बातें ये हैं - १. ये रत्न सदा अपना एक शुद्ध रंग ही रखते हैं और वह भी बहुत अधिक मात्रा में रखते हैं। इनमें मिश्रणों की संभावना नहीं है। २. ये सभी रत्न अत्यधिक चमकीले होते हैं और अपनी रंगीन किरण को सदा प्रकट करते हैं। ३. ये रत्न अल्कोहल, स्पिरिट और पानी में डाले जाने पर अपनी किरणों का प्रकाश विकीर्ण करते हैं । इनमें न्यूनता या थकान नहीं आती। ४. इन रंगों की विश्वसनीयता के लिए तिकोना शीशा (भृद्ग्नश्व) भी काम में लाया जाता है। हमारी जिला द्वारा उच्चारित भाषा की अपेक्षा दृष्टि में अवतरित रंग और आकृतियों की भाषा अधिक शक्तिशाली है । महामन्त्र में निहित रंगों की भाषा को स्वयं में उतारने से अद्भुत तदाकारता की स्थिति बनती है। प्रश्न ७६ मंगल पाठ में अरिहन्त, सिद्ध और साधु परमेष्ठियों की शरण ली गयी है । आचार्य एवं उपाध्याय परमेष्ठियों को क्यों छोड़ा गया है? उत्तर: मंगल पाठ में साधु परमेष्ठि में आचार्य और उपाध्याय परमेष्ठी गर्भित हैं क्योंकि अन्तिम तीन परमेष्ठी साधु (मुनि) हैं । पूर्णतया साधुपद में लीन होने के कारण साधु परमेष्ठी का विशिष्ट स्थान है । आचार्य और उपाध्याय यद्यपि मुनि हैं परन्तु संघ व्यवस्था और अध्यापन के दायित्व के कारण कभी कभी उनमें रागद्वेष की संभावना बनती है, फिर उन्हें निजी साधना के लिए समय भी कम मिलता है। यही कारण है कि ये अन्तिम समय में पुनः दीक्षा लेते हैं । आचार्य - उपाध्याय सदा निर्विकार हैं - यह भी मत है। 2112

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