Book Title: Mahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Author(s): Ravindra Jain
Publisher: Megh Prakashan

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Page 215
________________ प्रश्न ८२. ऋषि द्वारा किस दशा में स्फुटित ध्वनि नाद मन्त्र बनता है? पूर्ण रूप से जागृत मूलाधार शक्ति जब सहस्रार चक्र पर्यन्त अनहत नाद के रूप में प्रकट होती है तो वही मन्त्र बनती है । यही परावाणी है । यह ओंकारात्मक दिव्य ध्वनि के समान है। प्रश्न ८३. णमोकार महामन्त्र समस्त मन्त्रों और (विद्याओं का बीज है - कैसे)? उत्तर : सभी मन्त्र परमात्मा की उपासना रूप हैं । नवकार में परमात्मा के पाँचों स्वरूपों का नमन है, अत: यह समस्त मन्त्रों और विद्याओं का बीज बनता है। सभी मन्त्रों तथा विद्याओं में बीज रूप में यह मन्त्र अनुस्यूत है। (नमस्कार मीमांसा से साभार) प्रश्न ८४. ईश्वर सम्बन्धी जैन मान्यता क्या है? अन्य प्रमुख धर्मों से इसमें क्या मतभेद है? उत्तर : ईश्वर सम्बन्धी जैन मान्यता इस प्रकार है - १. सर्वज्ञ, वीतराग, हितोपदेशी, आवागमन रहित, समस्तकर्मनाशक, अशरीरी, प्रत्येक मुक्त आत्मा परमात्मा है । जैन परमात्मा सृष्टि के जनक, रक्षक · और नाशक नहीं है। २. अन्य धर्मों में ईश्वर एक ही है । वही पुनः पुनः अवतार लेता है । संकटकाल में भक्तों की रक्षा करता है और दुष्टों का नाश करता है । ईश्वर सष्टि का जनक रक्षक और ध्वंसकर्ता है । 2148

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