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चक्र
स्थान. १. मूलाधार चक्र मेरुदंड के नीचे मूल में २. स्वाधिष्ठान चक्र गुप्तांग के ऊपर ३. मणिपुर चक्र नाभि के ऊपर ४. अनाहत चक्र हृदय के ऊपर
विशुद्ध चक्र कंठ में ६. आज्ञा चक्र दोनों भौहों के नीचे .. ७. सहस्रार चक्र मस्तक के ऊपर
ये चक्र सदैव क्रियाशील रहते हैं और अपने मुख छिद्र में दिव्य शक्ति (प्राण वायु) भरते रहते हैं । इस शक्ति के अभाव में स्थूल शरीर जीवित नहीं रह सकता ।
कुंडलिनी - मूलाधार चक्र : यह मानव - मानवी के मेरुदंड के नीचे विद्यमान एक विकासशील शक्ति है । यही जीवन का मूलाधार है । यह हमारी रीढ़ के नीचे सुषुप्तावस्था में पड़ी रहती है । इसको ठीक समझने और उपयोग करने की शक्ति प्राय: मानव में नहीं होती । यह शक्ति लाभकारी भी है और नाशकारी भी । यदि पूर्ण जानकारी न हो तो इसे न छेड़ना ही उचित है । अनेक मनुष्यों में कभी कभी अद्भुत, अतिमानवीय एवं अतिप्राकृतिक दैवी एवं दानवी क्रियाएँ देखी जाती है । यह सब अज्ञात रूप से जागी कुंडलिनी का ही कार्य है । यह
आंशिक कार्य है । कुंडलिनी जागरण में बहुत सी बातें घटित होती हैं - जैसे सोते-सोते चलना, रात्रि में स्वप्न दर्शन, अति निद्रा या अनिद्रा । किसी गहरी जटिल समस्या का त्वरित समाधान मस्तिष्क में बिजली की तरह कौंध जाना भी इसका ही चमत्कार है । मूलाधार में शक्ति एकत्र होती है। वहीं से सभी चक्रों में वितरित
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