Book Title: Mahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Author(s): Ravindra Jain
Publisher: Megh Prakashan

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Page 164
________________ है। इसी प्रकार ध्वनि और योग का धरातल भी है। रंग, ध्वनि एवं प्रकाश ये तीन अभिन्न हैं और इस सृष्टि की रचना और सचालन में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भी। वैसे महामंत्र मात्र का स्वतंत्र स्तवन या जाप करने से स्वतः भक्त के सभी शारीरिक एवं मानसिक कष्ट नष्ट हो जाते हैं, परंतु पूर्ण आस्था और प्रकट आधार की कमी के कारण ही रंग, रत्न, ध्वनि आदि को लिया जाता है। भौतिक सूक्ष्म आधार एकाग्रता में भी सहायक होता है। मंत्रनिष्ठ परमेष्ठी-उपासक रक्षक दैवी शक्तियाँ सदैव रक्षार्थ तत्पर रहती हैं। "हमारी जिहा द्वारा उच्चरित भाषा की अपेक्षा दृष्टि में अवतरित रंगों और आकृतियों की भाषा अधिक शक्तिशाली है। महामंत्र में निहित रंगों की भाषा को स्वयं में उतारने-समझने में अद्भुत तदाकारता की स्थिति बनती है। पच परमेष्ठी के प्रतीकात्मक रंगों को क्रमशः ज्ञान, दर्शन, विशुद्ध आनंद और शक्ति के केन्द्रों के रूप में भी स्वीकृत किया गया है। ये परमेष्ठी पवित्रता, तेज, दृढता, व्यापक मनीषा एवं सतत मुक्ति-संघर्ष के प्रतीक भी है। उक्त पाँच रंगों की न्यूनाधिकता से हमारा शरीर और मस्तिष्क बहुत अस्त-व्यस्त हो जाते हैं .... ___ प्राचीन ऋषियों, मुनियों और ज्ञानियों ने अपने ध्यान, मनन और अनुभव से इन रंगों का अनुसंधान किया है। मंत्रों में रंग का विशेष महत्त्व है। रंग से एकाग्रता, ध्यान, समाधि और आत्मा तक सरलता से पहुँचा जा सकता है। रंग से इष्ट परमेष्ठी की छवि का संधान सुगम हो जाता है, निर्धम हो जाता है। हमारे शास्त्रों में भी चौबीस तीर्थंकरों, के रंग वर्णित है। रंग निहित शक्ति का द्योतक होता है। मंत्ररथ रंगों का शरीर और मन पर प्रभाव पड़ता है। "णमो अरिहंताणं" का श्वेतस्य आपको रोगों से बचाता है और आपकी पाचन शक्ति को ठीक करता है। मानसिक निर्मलता और संरक्षण शक्ति भी इसी श्वेतवर्ण से प्राप्त होती है। सिद्ध परमेष्ठी का लाल वर्ण शक्ति, क्रिया और गति का द्योतक है-पोषक है। घनत्व और नियंत्रण शक्ति भी इससे ही बढ़ती है। आचार्य का पीत वर्ण संयम और आत्मबल का वर्धक हे। चारित्र्य का पोषक है। उपाध्याय का प्रतीक नीला रंग शरीर में शांति, समन्वय 1638

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