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भौतिक-भाषापरक आणबिके रूप के साथ एक शक्तिपरक एवं आध्यात्मिक रूप भी है। णमोकार महामंत्र के संदर्भ में इसको समझना आवश्यक है। ध्वनि इस जगत् का मूल हैं ध्वनि के अभाव में इस जगत् को नहीं जाना जा सकता।
__ महामंत्र का त्रिविध जाप-मानस जाप-योगी, ऋषि जितेन्द्रि होने के कारण महामंत्र का मानस जाप (अविचल होकर-चुप रहकर) कर सकते हैं। यह जाप शरीर और मन के समस्त रोगों को नष्ट कर भीतरी ऊर्जा को जागृत करता है। यह अनहत नाद होता है। संपूर्ण मंत्र अथवा ॐ द्वारा भी यह किया जा सकता है। यह जाप पद्मासन या खड्गास द्वारा किया जा सकता है। यह यदि ब्रह्म मुहूर्त में किया जाय तो अधिकाधिक सफल एवं श्रेयस्कर होगा। श्वेत वस्त्र हो' और चन्द्रप्रभु की मूर्ति समक्ष हो तो उत्तम होगा। दिगंबर योगी इसके अपवाद हैं। यह उत्तयांगी प्रक्रिया है।
अर्धस्फुट जाप-महामंत्र के इस जाप में आवाज नहीं निकलती, परंतु ओष्ठ हिलते हैं। यह जाप व्रती गृहस्थ प्रमुख रूप से करता है-अनेक साधु भी इसे अपनाते हैं। इसे गणना के बिना लगभग दस मिनट एकाग्र चित्र से करें। इससे भावों में निर्मलता आती है और मस्तिष्क, मुख विवर तथा वक्षस्थल के सभी रोग-दोष दूर होते हैं। मनोबल अपराजेय होता है। महिलाएँ इससे पूर्णतया लाभान्वित हो सकती हैं। समय ब्राह्म मुहूर्त ही प्रमुख रूप से है। पद्मासन अपेक्षित
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स्फुट जाप-यह सस्वर जाप है। इसमें भक्त मंद स्वर मध्यम स्वर एवं उच्च स्वर से अपनी इच्छा एवं शक्ति के अनुसार 10 से 15 मिनट तक एकांत स्थान में जाप कर सकता है। वस्त्र स्वच्छ, पवित्र एवं श्वेत वर्ण के हो तो श्रेयस्कर होगा। यह व्यक्तिगत एवं सामूहिक स्तर पर भी किया जा सकता है। इसमें पाल्थी या पद्मासन हो तो श्रेयस्कर होगा। किसी कार्य के प्रारंभ में, संकट के समय इसका पाठ करें। इसमें मानसिक पवित्रता और ईमानदारी अनिवार्य शर्त है। यांत्रिक जपन उतना लाभकारी न होगा।
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