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सकता है । मानव अकाल मृत्यु से बच सकता है । उसका मन्त्रार्जित भीतरी बल और संयम उसे अपराजेय बनाते हैं। वर्तमान जीवन भव्य हो सकता है और उज्जवल भविष्यत् की दृढ़ आधारशिला निर्मित होती है। मानव का पुरुषार्थ यदि शेर को
श्रृगाल बनाता है. तो यह एक उपलब्धि ही होगी। प्रश्न ७अ. इस मन्त्र का जाप कितने प्रकार से किया जा सकता है? उत्तर : तीन प्रकार से
१. मानस जाप (मौन रहकर) २. अर्धस्फुट जाप (इसमें केवल ओष्ठ (अन्तर्जत्प) उपांशु
हिलते हैं।
३. स्फुट - सस्वर पाठ (संजल्य) आ. श्रेठ प्रकार कौनसा है और क्यों?
मानसपाठ सर्वोत्तम हैं, परन्तु इसमें चित्त की एकाग्रता भंग होने की पूरी संभावना है । संसारी गृहस्थ यह पाठ नहीं कर पाता, मुनियों से ही संभव है । मानस पाठ से आध्यात्मिक निर्मलता त्वरित गति से आती है । इन तीनों से आध्यात्मिक उर्जा का .
क्रमशः शत, सहस्र एवं लक्ष गुणित उन्नयन होता है । प्रश्न ८अ. इस महामन्त्र को नवकार मन्त्र क्यों कहते हैं?
इस महामन्त्र के मूल पाँच पद हैं । इसका चूलिका भाग जो चार पदों का है उसे मिलाकर कुल नौ पद हो जाते हैं । इसी से इसे नवकार महामन्त्र भी कहते हैं । अन्तिम चार पद वस्तुतः मूल महामन्त्र के फल का दिग्दर्शन कराते हैं। "ऐसो पंच नमोक्कारो सब्ब पावप्प णासणो ... मंगलाणं च सब्वेसिं पढमं हवई मगलं ॥"
उत्तर
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