________________
प्रश्न १६
उत्तर
महत्त्व
प्रश्न १७
वासुपूज्य तीर्थंकरों का रंग लाल है । अतः इनके समक्ष बैठकर णमो सिद्धाणं का जप किया जा सकता है।
आचार्य परमेष्ठी का प्रतीक रंग कौनसा है? उसका महत्व क्या है?
आचार्य परमेष्ठी का प्रतीक रंग पीला है ।
-
यह रंग संयम और आत्मबल का पोषक है । चारित्रय का सम्बर्धक है ।
उक्त तत्त्वों की शरीर और मन को आवश्यकता हो तो पीले वस्त्र और पीतवर्णी माला द्वारा ' णमो आपरियाणं' पद का सात दिनप्रतिदिन एक माला के हिसाब से जाप करें ।
उपाध्याय परमेष्ठी का प्रतीक रंग कौन सा है? उसका क्या महत्व है?
उत्तर
उपा. परमेष्ठी की प्रतीक रंग नीला है ।
महत्त्व यह नील वर्ण शरीर और मन में शान्ति स्थापित करता है । मन, वाणी और कर्म में समन्वय पैदा करता है । हृदय, फेफड़े और पसलियों को भी यह ठीक करता है । (नीले वस्त्र द्वारा सिकाई (Fomantation) किये जानेवर । यह मौलिक रंग है - अतः अतिप्रभावक है । शरीर में इस वर्ण भी कभी व्यक्ति को क्रोधी एवं स्वार्थी बनाती । कफ का रंग नील है । इस पर नियन्त्रण नील वर्ण के पुखराज से और चतुर्थपद के जाप से हो सकता है । यह वर्ण भाव विस्तार में सहायक है ।
नोट : वस्तुतः अरिहन्त परमेष्ठी की श्वेतांभा में सारे रंग गर्मित हैं - पंचपरमेष्ठी गर्मित हैं। जिसके मन में अरिहन्त भी श्वेतांभा का जन्म हो गया उसे अन्य चार परमेष्ठियों की वर्णाभा प्राप्त करना अत्यन्त सहज है । महामन्त्र णमोकार पृ. ९२-९३ डा. रवीन्द्र जैन
२४ में से १७ तीर्थकरों का रंग स्वर्ण वर्ण अर्थात् पीला है । बौद्धिक उन्नति, भीतरी शुद्धता । पृथ्वीतत्त्व का पीला रंग हमारे शरीर में व्याप्त है ।
£1818