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महामंत्र का सामूहिक सस्वर पाठ
महामंत्र के सामूहिक सस्वर पाठ का अनेक प्रकार से महत्त्व है। इससे मंत्र भी प्रभावना होती है। समाज के आबाल वृद्ध नर-नारियों में सह-अस्तित्त्व, सामाजिकता, समभाव और आध्यात्मिक रुचि का प्रस्फुटन एवं उन्नयन होता है। एक माह में एक बार एक जगह (जिनालय, निजीघर या धार्मिक भवन) सम्मिलित होकर मधुर स्वर में गेय-शैली में नर-नारी क्रमशः उच्चारण कर सकते हैं। इससे मनशुद्धि, शरीर-शुद्धि एवं गृह-शुद्धि होती है। उदासीन लोगों में रुचि उत्पन्न होती है। उच्च-ध्वनि का और गेय-शैली का सामूहिक पाठ निश्चित रूप से हमारे शरीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक बल को सम्बर्धित करता है। हमारी आस्तिक भावना को तीव्र करता है। अनेक व्यक्ति अकेले कुछ नहीं कर पाते, उनका मन नहीं लगता। उनके लिए तो यह एक स्वर्णिम अवसर है। सामुदायिक अवसरों पर पूर्ण शांति बहुत आवश्यक है। जहाँ मंत्र-पाठ हो रहा है, वह स्थल उतनी देर के लिए जिनालय है। अतः कोई घरेलू चर्चा या कुविचार वहाँ मन में न लाएं क्योंकि
“अन्य स्थाने कृतं पापं, जल रेखा भविष्यति।
देव स्थाने कृतं पापं, वज लेपो भविष्यति।" अर्थात् किसी सामान्य स्थान में किया गया पाप जलरेखा के समान थोड़े प्रायश्चित्त से धुल जाएगा। परंतु, देवस्थान में किया गया पाप वज्ररेखा के समान अमिट होगा। इसका फल या दण्ड तो भोगना ही पड़ेगा।
यह सामूहिक पाठ 45 मिनट का हो सकता है। 108 बार (एक माला) उच्चारण काफी है अपनी रुचि के अनुसार समय बढ़ाया भी जा सकता है। हाँ, एक बात पर ध्यान रहे कि किसी प्रकार पाप वृत्ति मन में न रहे। सामाजिक, सामूहिक अवसरों पर पुण्य के साथ-साथ पाप संचय की भी सुविधा लोग जुटा लेते हैं। यह पाप नरक गति का कारण है। सामूहिक मंत्र पाठ के बाद किसी ज्ञाता, अनुभवी विद्वान् से महामंत्र पर प्रवचन सुनना चाहिए। अर्थ और भाव की जानकारी और
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