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2116 2 महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण
afeचित्र हो जाते हैं । अतः स्पष्ट है कि मानव के आध्यात्मिक विकास में सबसे बड़ी बाधा है सांसारिक रिश्तों में घोर रागात्मकता, सांसारिक सुख-सम्पत्ति के प्रति अटूट लगाव |
यह आसक्ति यह लगाव एक ऐसी मदिरा है जिसमें मानव का समस्त विवेक पूर्णतया नष्ट हो जाता है। इस एक अवगुण के आ जाने पर अन्य अवगुण तो अनायास आ ही जाते हैं। इसी प्रकार मन से आसक्ति हट जाने पर सारे विषय भोग स्वतः सूखकर समाप्त हो जाते हैं | मोकार मन्त्र के द्वारा भक्त की उत्कट चैतन्य शक्ति (आभामंडल ) निर्णायक एवं निर्माणकारी दिशा में परिवर्तित होती है । ज्यों-ज्यों मन्त्र भक्त के चैतन्य में उतरता जाता है त्यों-त्यों उसका सब कुछ उदीप्तीकृत होता जाता है ।
" मन्त्र आभामण्डल को बदलने की आमूल प्रक्रिया है । आपके आस-पास की स्पेस और इलेक्ट्रो डायनेमिक फील्ड बदलने की प्रक्रिया है ।"
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अरिहन्त मंजिल है, जिसके आगे फिर कोई यात्रा नहीं है । कुछ करने को न बचा जहाँ, कुछ पाने को न बचा जहां, कुछ छोड़ने को भी न बचा जहां, सब समाप्त हो गया। जहां शुद्ध अस्तित्व रह गया, प्योर एक्जिस्टेंस जहां रह गया, जहां गन्ध मात्र रह गया, जहां होना मात्र रह गया, उसे कहते हैं अरिहन्त ।
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लेकिन अरिहन्त शब्द है निगेटिव - नकारात्मक । उसका अर्थ है जिनके शत्रु समाप्त हो गये। यह 'पॉजिटिव' नहीं है, विधायक नहीं है । असल में इस जगत् में जो श्रेष्ठतम अवस्था है, उसको निषेध से ही प्रकट किया जा सकता है ।" है ससीम है, छोटा है, नहीं असीम है बड़ा हैं । नहीं बहुत विराट है । इसीलिए परमशिखर पर रखा है अरिहन्त को ।
1. महावीर वाणी- पृढं 41-42 - ले० श्री रजनीश