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1 1148 महासन्ध पमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण सान्निध्य एवं आध्यात्मिक उन्नयन के लिए योग-साधना की महनीयता स्वतः सिद्ध है।
"योग समाप्त होते हैं, वही योग का आदि विन्द्र है। योग का मल स्त्रोत अयोग का अर्थ है केवल आत्मा । योग का अर्थ है आत्मा के साथ सम्बन्ध की स्थापना । अयोग अयोग होता है, योग-योग होता है, वह न जैन होता है, न बौद्ध और न पातंजल।" योग विज्ञान है और है प्रयोगात्मक मनोविज्ञान । जीवन को अमर सार्थकता योगमय नियमित कार्यक्रम ही दे सकता है।
णमोकार महामन्त्र का प्रत्येक अक्षर अक्षय शक्तियों का भण्डार है। इनके उद्घाटन और तादात्म्य की स्थिति योग द्वारा ही जीव में संभव है। अतः स्पष्ट है कि योग-मार्ग से साक्षात्कृत मन्त्र स्वतः जीव में या साधक में सहज ही विश्वजनीन समत्व एवं शान्ति का परात्पर उद्घोष करता है । दृष्टि और दृष्टिकोण का यही सर्वांगीण विस्तार मन्त्रों का मर्म है। शत प्रतिशत लक्ष्यात्मकता योग का प्राण है। ।